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धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (३)
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वृत्तिकार पाल्यकीर्ति-प्रोक्त धातुपाठ पर अनेक वैयाकरणों ने व्याख्याएं लिखी होंगी, परन्तु हमें उनमें से निम्न व्याख्याकारों का ही परिज्ञान हैं।
१–पाल्यकोति पाल्यकीर्ति ने अपने व्याकरण की स्वोपज्ञा अमोधा वृत्ति लिखी है । इस युग के प्रायः सभी ग्रन्थकारों ने, विशेषकर सूत्रकारों ने अपनेअपने ग्रन्थों पर स्वयं व्याख्याग्रन्थ लिखे हैं। इससे सम्भावना है कि पाल्यकीर्ति ने भी स्वीय धातुपाठ पर कोई व्याख्याग्रन्थ लिखा हो । सायण ने माधवीय धातूवत्ति आदि में पाल्यकीर्ति अथवा शाकटोयन १० के जो पाठ उद्धृत किए हैं, उनमें से निम्न पाठ विशेष महत्त्व के हैं- १–सायण तनादिगण की क्षिणु-धातु पर लिखता है--
शाकटायनक्षीरस्वामिभ्यामयं धातुर्न पठ्यते ।... शाकटायन: पुनस्तत्र (स्वादौ) छान्दसमेवाह । पृष्ठ ३५६ ॥ । अर्थात् शाकटायन ने तनादिगण में क्षिणु धातु नहीं पढ़ी......... १५ वह स्वादि में पठित क्षि धातु को छान्दस कहता है । • इससे स्पष्ट है कि शाकटायन ने अपने धातुपाठ पर कोई वृत्तिग्रन्थ लिखा था, उसी में उसने स्वादिगणस्थ क्षि धातू को छान्दस कहा होगा। २-सायण' कण्ड्वादि के व्याख्यान में लिखता है
२० तदेतदमोघायां शाकटायनधातुवृत्तौ अर्थनिर्देशरहितेऽपि गणपाठे "" धातुवृत्ति, पृष्ठ ४०४ ।
३-व्यक्तं चैतद् धनपालशाकटायनवृत्त्योः । पुरुषकार पृष्ठ २२ । इन उद्धरणों से शाकटायन को स्वोपज्ञ धातुवृत्ति का सद्भाव विस्पष्ट है । धातुवृत्ति का पाठ कुछ भ्रष्ट है।
शाकटायन विरचित धातुवृत्ति का नाम 'धातुपाठविवरण' था। . १. कण्डवादिगण के प्रारम्भ में 'तेन सायणपुत्रेण व्याख्या कापि विरच्यते' पाठ है । तदनुसार इस अंश का व्याख्याता सायणपुत्र है।