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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
वामन ने स्वव्याकरणसंबद्ध धातुपाठ का प्रवचन भी अवश्य किया होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं । परन्तु इस धातुपाठ और इसके किसी व्याख्याता अथवा व्याख्या का कोई साक्षात् उद्धरण हमारे देखने में नहीं आया। हां, क्षीरस्वामी ने धातुसूत्र १।२१६ की व्याख्या में एक पाठ उद्धृत किया है । वह इस प्रकार है
'अत एव विड शब्दे पिट आक्रोशे इति मल्लः पर्यटकान्तरे विभगयाह ।' क्षीरतरङ्गिणी पृष्ठ ५४ ।
यदि इस उद्धरण में स्मत 'मल्ल' से प्राचार्य मल्लवादी का निर्देश हो, तो यह अनुमान लगाया जा सकता है कि मल्लवादी ने १० विश्रान्तविद्याधर व्याकरण से संबद्ध धातुपाठ पर कोई व्याख्यान
ग्रन्थ लिखा था। प्राचार्य मल्लवादी ने वामन प्रोक्त विश्रान्तविद्याधर व्याकरण पर 'न्यास' ग्रन्थ लिखा था, यह हम प्रथम भाग में लिख चुके है।
धातुपाठसंबन्धी वाङमय में प्रसिद्ध एक मल्ल आख्यातचन्द्रिका १५ का लेखक भट्ट मल्ल भी है । क्षीरतरङ्गिणी में स्मत भट्ट मल्ल नहीं
है। वह तो साक्षात् किसी धातुपाठ का व्याख्याता है, यह पर्यट्टकान्तरे विभङ्ग्याह पदों से स्पष्ट है।
इससे अधिक हम इस धातुपाठ के सम्बन्ध में कुछ नहीं जानते ।
१२. पाल्यकीर्ति (शाकटायन) (सं० ८७१-९२४ वि०) २० प्राचार्य पाल्यकीर्ति के शाकटायन व्याकरण और उसके काल आदि के विषय में इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में विस्तार से लिख चुके हैं।
शाकटायन धातुपाठ पाल्यकीति ने स्वीय शब्दानुशासन से संबद्ध धातूपाठ का भी प्रवचन किया था। यह धातुपाठ काशी से मुद्रित शाकटायन व्याकरण २५ की लघवत्ति के अन्त में छपा है। डा. लिबिश ने भी इसका एक
संस्करण प्रकाशित किया है । शाकटायन धातुपाठ पाणिनि के औदीच्य पाठ से अधिक मिलता है।