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धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (३) १२७ श्लोक छपा है, उससे ध्वनित होता है कि उक्त पाठ आचार्य गुणनन्दी द्वारा संशोधित है।'
शब्दार्णव के अन्त में छपा धातुपाठ प्राचार्य गुणनन्दी द्वारा संस्कृत है। इसमें यह भी प्रमाण है कि जैनेन्द्र १।२।७३ की महावृत्ति में मित्संज्ञाप्रतिषेधक 'यमोऽपरिवेषणे' धातुसूत्र उद्धृत है। गुणनन्दी ५ द्वारा संस्कृत धातुपाठ में न तो कोई मित्संज्ञाविधायक सूत्र मिलता है, और न ही प्रतिषेधक। प्राचीन धातुग्रन्थों में नन्दी के नाम से जो धातुनिर्देश उपलब्ध होते हैं, वे उसी रूप में इस धातुपाठ में सर्वथा नहीं मिलते। इससे भी यही प्रतीत होता है कि वर्तमान जैनेन्द्र धातुपाठ गुणनन्दी द्वारा परिष्कृत है। __जैनेन्द्र के मूल धातुपाठ के उपलब्ध न होने के कारण भारतीय ज्ञानपीठ (काशी) से प्रकाशित जैनेन्द्रमहावृत्ति के अन्त में मेरे निर्देश से गुणनन्दी द्वारा संशोधित पाठ ही छपा है।'
वृत्तिकार जैनेन्द्र धातुपाठ पर अनेक वैयाकरणों ने वृत्तिग्रन्थ लिखे होंगे, १५ परन्तु सम्प्रति उनमें से कोई भी वृत्ति ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है।
१--प्राचार्य देवनन्दी आचार्य देवनन्दी ने अपने धातुपाठ पर कोई व्याख्यान लिखा था, इस विषय में कोई साक्षात् वचन उपलब्ध नहीं होता। परन्तु हैमलिङ्गानुशासन के स्वोपज्ञविवरण में नान्दिधातुपारायण (पृष्ठ १३२, २० पं० २०) तथा नन्दिपारायण (पृष्ठ १३३, पं० २३) के पाठ उद्धत हैं। इनसे इतना स्पष्ट है कि प्राचार्य देवनन्दी ने धातुपाठ पर कोई वत्तिग्रन्थ लिखा था, और उसका नाम धातुपारायण था। प्राचार्य हेमचन्द्र ने स्वीय धातुपारायण में देवनन्दी और नन्दी के अनेक मत उद्धृत किये हैं। इसके पृष्ठ १०३, पं० २ में पारायणिकानाम्' निर्देश पूर्वक २५ एक मत उद्धृत है।
१. देवनन्दी द्वारा संस्कृत शब्दार्णव व्याकरण के विषय में देखिए–'सं० व्या० शास्त्र का इतिहास का प्रथण भाग।
२. जैनेन्द्र महावृत्ति ज्ञानपीठ संस्करण के प्रारम्भ में, पृष्ठ ४७ । ३. द्र० हैम घातुपारायण षष्ठ परिशिष्ट, पृष्ठ ४७० ।