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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
तथा काश्यप के मत अनेक स्थानों पर उद्धृत हैं। उनसे विदित होता है कि किसी कश्यप ने किसी धातुपाठ पर भी कोई व्याख्यान ग्रन्थ लिखा था। हमारा विचार है कि धातुवृत्ति में स्मृत कश्यप यही कश्यपभिक्षु है, और उसके मत सायण ने उसकी चान्द्र धातुवृत्ति से ही उद्धृत किए हैं
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९. क्षपणक (वि० सं० प्रथमशती) क्षपणकप्रोक्त क्षपणक व्याकरण का उल्लेख हम इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में कर चुके हैं। क्षपणक ने अपने व्याकरण पर वृत्ति और महान्यास नामक ग्रन्थ लिखे थे । उज्ज्वलदत्त ने क्षपणक की उणादिवृत्ति का उल्लेख किया है। इन सब पर विचार करने से प्रतीत होता है कि क्षपणक ने अपने धातुपाठ पर भी कोई व्याख्यानग्रन्थ अवश्य लिखा होगा। क्षपणक के काल आदि के सम्बन्ध में इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में 'क्षपणक व्याकरण' के प्रसंग में लिख चुके हैं ।
१०. देवनन्दी (वि० सं० ५००-५५० पूर्व) १५ जैन आचार्य देवनन्दी के जैनेन्द्र व्याकरण के विषय में इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में विस्तार से लिख चुके हैं।
प्राचार्य देवनन्दी का काल-प्राचार्य देवनन्दी का काल वि० सं० ५००-५५० के मध्य है, यह प्रथम भाग में विस्तार से निर्णीत चुके हैं।
जैनेन्द्र धातुपाठ और उसके दो पाठ प्राचार्य पूज्यपाद के जैनेन्द्र व्याकरण के धातुपाठ का मूलपाठ इस समय उपलब्ध नहीं है । प्राचार्य गुणनन्दी (वि० सं० ११०-९६०) ने जैनेन्द्र व्याकरण का एक विशिष्ट प्रवचन किया था। उसका नाम है-शब्दार्णव । इसे वर्तमान वैयाकरण दाक्षिणात्य संस्करण के नाम
से स्मरण करते हैं। शब्दार्णव का जो संस्करण काशी से प्रकाशित पहा है, उसके अन्त में जैनेन्द्र धातुपाठ छपा है। इसके अन्त में जो
१. क्षपणकवृत्ती अत्र 'इति' शब्द प्राद्यर्थे व्याख्यातः । पृष्ठ ६०