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धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (३)
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इन उद्धरणों से स्पष्ट है कि प्राचार्य चन्द्र ने स्वधातु पाठ पर कोई स्वोपज्ञ वत्ति लिखी थी । विभिन्न धातवत्तिकारों ने उसी से चन्द्राचार्य के धातुविषयक मत उद्धृत किये हैं।
२-पूर्णचन्द (वि० सं० १११५ से पूर्व) पूर्णचन्द्र नामक वैयाकरण ने चान्द्र धातुपाठ पर कोई व्याख्यान ५ लिखा था। उसके अनेक उद्धरण प्राचीन ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं । दैव-व्याख्याता कृष्ण लीलाशुक मुनि लिखता है'तथैव चान्द्रेण पूर्णचन्द्रेण ऋणु गतौ ...।' पुरुषकार पृष्ठ २१ ।
पूर्णचन्द्रीय धातुवृत्ति का नाम-पूणचन्द्रविरचित चान्द्र धातुपाठ की वृत्ति का नाम 'धातुपारायण' था। टीकासर्वस्वकार बन्धघटीय १० सर्वानन्द लिखता है
'ऋभुक्षो वज्र इति धातुपारायणे पूर्णचन्द्रः ।' अमरटीका १।१।४४ (भाग १, पृष्ठ ३४) ॥
पूर्णचन्द्र का काल-पूर्णचन्द्र का धातुपारायण हमारे देखने में नहीं पाया। अतः इसके काल के विषय में निश्चित रूप से हम कुछ १५ कहने में असमर्थ हैं । हां, क्षीरस्वामी ने पूर्णचन्द्रविरचित 'धातुपारायण' का पारायण नाम से कई स्थानों में उल्लेख किया है। दो स्थानों पर उसके साथ चन्द्र तथा चान्द्र विशेषण भी निर्दिष्ट है । यथा
१. यम चम इति चन्द्रः पारायणे । क्षीरतरङ्गिणी १०७५, पृष्ठ २० २८८ । इसका पाठान्तर है-चन्द्रः पारायणव्याख्यानात् ।
२. वन श्रद्धोपहिसनयोरिति चान्द्रं पारायणम् । क्षीरतरङ्गिणी १०।२२६, पृष्ठ ३०६ ॥ .. इन उद्धरणों से इतना स्पष्ट है कि पूर्णचन्द्र क्षीरस्वामी से प्राचीन है । क्षीरस्वामी का काल वि० सं० १११५-११६५ के मध्य है। २५
३-कश्यपभिक्षु (सं० १२५७ वि०) कश्यपभिक्षु ने वि० सं० १२५७ के लगभग चान्द्र सूत्रों पर एक वृत्ति लिखी थी। यह हम इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में चान्द्र व्याकरण के वृत्तिकार प्रकरण में लिख चुके हैं। माधवीया धातुवृत्ति में कश्यप