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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास आचार्य देवनन्दी ने पाणिनीय व्याकरण पर भी शब्दावतारन्यास नामक एक ग्रन्थ लिखा था।' धातुपारायण नाम का एक धातूव्याख्यान ग्रन्थ पाणिनीय धातुपाठ पर भी था। सर्वानन्द ने अमरटीकासर्वस्व में लिखा है
वावदूकः-वर्यङन्ताद् यजजपदशां यङः इति बहुवचननिदशादन्यतोऽपि ऊक इति धातुपारायणम् ।' भाग ४, पृष्ठ १८ ।
यहां उद्धृत यजजपदशां यङः सूत्र पाणिनीय व्याकरण (३।२। १६६) का है। इसलिए उक्त धातुपारायण भो पाणिनीय धातुपाठ पर था, यह स्पष्ट है। . माधवीया धातुवृत्ति में वन षण संभक्तो (पृष्ठ ६४) धातुसूत्र पर धातुपारायण का एक पाठ उद्धृत है। उससे भी यही विदित होता है कि धातूपारायण नाम का कोई ग्रन्थ पाणिनीय धातुपाठ पर भी था। काशिकावृत्ति के प्रारम्भ में भी धातुपारायण स्मत है।
ऐसी अवस्था में हम निश्चयपूर्वक नहीं कह सकते कि प्राचार्य १५ देवनन्दी का धातुपारायण पाणिनीय धातुपाठ पर था, अथवा जैनेन्द्र धातुपाठ पर।
२--श्रुतपाल (वि० ६ शती अथवा कुछ पूर्व) श्रतपाल के धातुविषयक अनेक मत धातुव्याख्यानग्रन्थों में उदधत हैं। श्रुतपाल ने जैनेन्द्र धातुपाठ पर कोई व्याख्यान-ग्रन्थ लिखा था, यह हम इसी ग्रन्थ के प्रथम भाग में कातन्त्र-व्याकरण के दुर्गवत्ति के टीकाकार दुर्गसिंह (द्वितीय) के प्रकरण में लिख चुके हैं।
काल-श्र तपाल का निश्चित काल अज्ञात है। इसके जो उद्धरण व्याकरणग्रन्थों में उद्धृत हैं, उनसे निम्न परिणाम निकाला जा सकता है___ कातन्त्र व्याकरण की भगवद् दुर्गसिंह की कृवृत्ति के व्याख्याता अपर दुर्गसिंह ने कृतसूत्र ४१ तथा ६८ की वृतिटीका में श्रुतपाल का उल्लेख किया है। इस कातन्त्रवृत्ति-टीकाकार दुर्गसिंह का काल
१. द्र० सं० व्या० शास्त्र का इ.तहास भाग १, ‘अष्टाध्यायी के वृत्तिकार' प्रकरण। २. द्र०-सं० व्या० शास्त्र का इतिहास भाग १, दुर्गवृत्ति के ३० टीकाकार प्रकरण ।