________________
धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (३)
१२३
काशकृत्स्न धातुपाठ का प्रभाव-चान्द्र धातुपाठ पर कोशकृत्स्न धातुपाठ की प्रवचन-शैली का पर्याप्त प्रभाव है। इसका निदर्शन हम काशकृत्स्न धातुपाठ के प्रकरण (भाग २, पृष्ठ ३४-३५) में करा चुके हैं।
पाठभ्रंश चान्द्र-धातुपाठ का जो पाठ लिबिश ने सम्पादित करके ५ प्रकाशित किया है, उसमें बहुत्र पाठभ्रंश उपलब्ध होता है । यथा
१-धातसूत्र ११३६६ (पृष्ठ १३, कालम १) का मुद्रित पाठ हैकेब पेब मेब रेब गतौ । यह पाठ चिन्त्य है, क्योंकि प्रकरण पान्त धातुरों का है। धातुसूत्र ३६४-४०१ तक पान्त धातुएं पढ़ी है, उसके पश्चात् बान्त धातुओं का पाठ प्रारम्भ होता है।
२-धातुसूत्र १४१५ का मुद्रित पाठ हैं-श्रम्भु प्रमादे। धातु वृत्ति में इसके विषय में स्पष्ट निर्देश है-दन्त्यादिरिति चन्द्रः (पृष्ठ ८६) । तदनुसार यहां शुद्ध पाठ सम्भु प्रमादे होना चाहिए ।
३-धातुसूत्र १।१०४ के कटी इ गतौ पाठ में 'इ' धातु ह्रस्व इकाररूप है, परन्तु धातुप्रदीप पृष्ठ २९ में मैत्रेय ने दीर्घमिच्छन्ति १५ चान्द्राः का निर्देश करके चान्द्र पाठ 'ई' दर्शाया है।
४-क्षीरतरङ्गिणी में क्षीरस्वामी ने पाणिनीय धातुपाठ ११५६५ का पाठ स्यमु स्वन स्तन ध्वन शब्दे लिखकर ष्टन इति चन्द्रः (पृष्ठ ११५) लिखा है । चान्द्र धातुपाठ ११५५६ सूत्र का पाठ-स्यमु स्वन ध्वन शब्दे छपा है, इसमें ष्टन धातु का निर्देश नहीं है। २०
५-धातुसूत्र १।३५६ का पाठ जपा है-मच मुचि कल्कने । क्षीरस्वामी ने क्षीरतरङ्गिणो में मुचेति चन्द्रः का निर्देश करके मोचते उदाहरण दिया है।
ये चान्द्र धातुपाठ के थोड़े से अपभ्रंश दर्शाए हैं। चान्द्र धातुपाठ के भावी सम्पादक को इन पाठभेदों का पूरा-पूरा ज्ञान होना चाहिए। २५
१. मैत्रेय के धातुप्रदीप पृष्ठ ३३ पर भी पान्त प्रकरण में पेड़ षेबू सेवने, रेव प्लेबु गतौ दो घातुसूत्रों में बान्त धातुएं पड़ी हैं। प्रतीत होता है मैत्रेय ने यह पाठ चान्द्र के अनुसार स्वीकार किया है । यदि यह अनुमान ठीक हो, तो मानना पड़ेगा कि चान्द्र धातुपाठ में पाठभ्रंश चिरकाल से विद्यमान है।