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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
प्रचार न होने से तथा शक और शाक' शब्दों का संवत् का पर्याय होने से सम्भव है यहां निर्दिष्ट १४५८ विक्रम संवत् होवे ।
धातुवृत्ति का नाम-रमानाथकृत कातन्त्र-धातुवृत्ति का नाम मनोरमा है । इसका एक हस्तलेख जम्मू के हस्तलेखसंग्रह में भी विद्य५ मान है। इसका निर्देश हस्तलेख संग्रह के सूचीपत्र पृष्ठ ४० पर उप
लब्ध होता है। ___ नाथीय धातुवृत्ति-वन्द्यघटीय सर्वानन्द ने अमरटीकासर्वस्व में किसी नाथीय धातुवृत्ति का निम्न पाठ उद्धृत किया है
'नाथीयधातुवृत्तावपि कोषवन्मूर्धन्यषत्वं तालव्यशत्वं चोक्तम् ।' १० २०६।१००; भाग २, पृष्ठ ३६० ।
___ सर्वानन्द का काल वि० सं० १२१५ है। अतः अमरटीकासर्वस्व में उद्घत नाथीय धातुवृत्ति रम नाथकृत नहीं हो सकती। यह नाथीय धातुवृत्ति किस की है, तथा किस व्याकरण से सम्बद्ध है, यह अनुसन्धातव्य है।
८. चन्द्रगोमी (सं० १००० वि० पू०) आचार्य चन्द्रगोमो-प्रोक्त शब्दानुशासन तथा उसके देशकाल आदि के विषय में इसी ग्रन्थ के प्रथम भाग में चान्द्र व्याकरण के प्रसंग में हम विस्तार से लिख चुके हैं । अतः यहां पिष्टपेषण करना उचित
नहीं है
चान्द्र-धातुपाठ आचार्य चन्द्रगोमी ने स्वीय तन्त्र के लिये उपयोगी धातुपाठ का भी प्रवचन किया था। यह धातुपाठ सम्प्रति उपलब्ध हैं । ब्रुनो लिबिश ने चान्द्रव्याकरण के साथ इसे प्रकाशित किया है।
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१. शाकपार्थिवादीनामुपसंख्यानम् (महा० २।१।६८) वार्तिक में निर्दिष्ट शाकपार्थिव वे कहाते हैं जो संवत्सर के प्रवर्तक होते हैं। शक एव शाकः, प्रज्ञादि से स्वार्थ में अण्प्रत्यय । हरदत्त ने काशिका २०११६० में पठित उक्त वात्तिक के व्याख्यान में तस्याभ्यवहारेषु शाकप्रियत्वात् प्रधानम् अर्थ लिखा है, वह चिन्त्य है। द्र. हमारी महाभाष्य हिन्दीव्याख्या २।१६८, भाग ३, पृष्ठ १७४ ।