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धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (३)
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६ - धातुपारायणे त्रिलोचनेन खन्नातीति दर्शितम्, तत्तु लेखकप्रमाद एवेति ( कलापचन्द्र ३ । २०३५ ) |
त्रिलोचन का यही मत रमानाथ ने मनोरमा धातुवृत्ति में भी उद्धृत किया है
धातुपारायणे तु खग्नातीत्युदाहृतमितिविस्तरवृत्तावुक्तम् (मनो० ५ ऋयादि ५० ) ।
त्रिलोचनदास के काल आदि के विषय में हम प्रथम भाग में कातन्त्र व्याकरण के व्याख्याता प्रकरण में लिख चुके हैं । ४ रमानाथ (सं० १५६३ वि० )
रमानाथ ने कातन्त्र धातुपाठ पर एक वृत्तिग्रन्थ लिखा था, इस १० की सूचना कविकल्पद्रुम के व्याख्याता दुर्गादास विद्यावागीश कृत दीपिका से मिलती है। दुर्गादास लिखता है -
'भरणं पोषण पूरणं वा इति कातन्त्रधातुवृत्तौ रमानाथः । पृष्ठ ४८ ।
दुर्गादास ने रमानाथकृत धातुवृति के अनेक उद्धरण अपनी धातुदीपिका में उद्धृत किए हैं ।
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परिचय - रमानाथकृत धातुवृत्ति हमारे देखने में नहीं आई । इसलिए इसके वंश और देश आदि के विषय में हमें कुछ भी ज्ञात नहीं ।
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काल- रामनाथकृत कातन्त्र - धातुवृत्ति का एक हस्तलेख इण्डिया ग्राफिस ( लन्दन) के पुस्तकालय में विद्यमान है । उसका उल्लेख इण्डिया आफिस पुस्तकालय के हस्तलेख सूचीपत्र भाग १ खण्ड २ संख्या ७७५ पर है। इस हस्तलेख के अन्त में निम्न पाठ है'वसुबाणभुवनगणिते शाके धर्मद्रवीतीरे । कातन्त्रधातुवृत्तिनिर्मितवान् रमानाथः ॥'
अर्थात् - रमानाथ ने १४५८ शक में कातन्त्र व्याकरणसम्बन्धी धातुवृत्ति ग्रन्थ लिखा ।
इससे स्पष्ट है कि रमानाथ का काल ( शक सं० १४५८+ १३५ = ) १५९३ विक्रम है । बंगाल में शालिवाहन शक संवत् का
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