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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
परिष्कार किया तब भी उसे पाणिनीय धातुपाठ का व्याख्याता माना ही जाता है।
दुर्गवृत्ति के कई हस्तलेख विभिन्न पुस्तकालयों में विद्यमान हैं, परन्तु वे सभी प्रायः अपूर्ण हैं। इस वृत्ति का प्रकाशन अत्या५ वश्यक है।
दुर्गसिंह के काल आदि के विषय में हम प्रथम भाग में कातन्त्र के व्याख्याकार प्रकरण में विस्तार से लिख चुके हैं।
___३-त्रिलोचनदास (सं० ११००?) दर्गसिंह कृत कातन्त्र वृत्ति पर पञ्चिका नाम्नी व्याख्या के " लेखक त्रिलोचनदास ने कातन्त्र धातुपाठ पर 'धातुपारायण' नाम की
व्याख्या लिखी थी। इस के कई प्रमाण पं० जानकीप्रसाद द्विवेद ने अपने कातन्त्र व्याकरण विमर्श के पृष्ठ ९७ पर दिये हैं। वे इस प्रकार हैं
१-पवर्गपञ्चमादिरिति त्रिलोचनः (मनोरमा, भू० ६०) । १५ २-[वेल्ल] नायमस्तीति दुर्गत्रिलोचनौ ( मनोरमा, भू० १८०)।
३-द विदारणे इति तैयादिकस्येह पाठो मानुबन्धार्थो न पुनः प्रकृत्यन्तराभिधानादिति त्रिलोचनादयः (मनो० भू० ५२२)।
४-चात् प्रकृतायां गतौ इति त्रिलोचनादयः (मनो० भू०
२० ५७३)।
५-वृदिति त्रिलोचन: । वस्तुतस्त्वत्र वृच्छन्दो नास्ति । वृत्ती रुधादिपञ्चको गण इति व्याख्यानात (मनो० अ० ३५)
त्रिलोचनदास की वृत्ति का नाम धातुपारायण था, यह निम्न उद्धरण से ज्ञात होता है।
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१. का० व्या० विमर्श पृष्ठ ६६ पर यहां (मुछ प्रमादे भू० ६०) ऐसा पाठ उद्धृत किया है। हमारे कातन्त्र धातुपाठ के हस्तलेखों में 'यूछ प्रमादें' पाठ है। यही शुद्ध है। 'मुछ पाठ में 'पवर्गपञ्चमादिरिति त्रिलोचन: निर्देश हो ही नहीं सकता है। क्योंकि वह पवर्गपञ्चमादि ही है।