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________________ धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (२) ११७ क्षीरतरङ्गिणी के अन्त में छापे गये धातुपाठ के तिब्बती अनुवाद को ही कातन्त्र का धातुपाठ समझते थे। ___ कातन्त्र धातुपाठ का पुनः शर्ववर्मा द्वारा संक्षेप क्षीरतरङ्गिणी के प्राद्य सम्पादक जर्मन विद्वान् लिबिश ने क्षीरतरङ्गिणी के अन्त में शर्ववर्मकृत धातुपाठ का तिब्बती-अनवाद प्रका- ५ शित किया है । यदि यह तिब्बती अनुवाद शर्ववर्मप्रोक्त धातुपाठ का अक्षरशः अनुवाद हो तो मानना होगा कि शर्ववर्मा ने प्राचीन कातन्त्र धातुपाठ' का कोई संक्षेप किया था और उसी का यह अनुवाद है। कोथ का भी कहना है कि शर्ववर्मा का धातुपाठ केवल तिब्बतो अनुवाद में उपलब्ध होता है । ___डा० रामअवध पाण्डेय (काशो) ने २०-१२-६१ के पत्र में हमें सूचना दी थी कि कातन्त्र धातुपाठ के दो प्रकार के पाठ मिलते हैं। गत वर्ष (सं० २०४०) के प्रारम्भ में डा. राम अवध पाण्डेय ने कातन्त्र धातुपाठ की एक प्रतिलिपि भेजी है। वह शर्ववर्मकृत संक्षिप्त संस्करण की है । मुद्रित दौर्गवृत्तिसार में छपे धातुपाठ के साथ पं० १५ रामअवध पाण्डेय द्वारा प्रेषित प्रतिलिपि प्रायः समता रखती है। अब हमें यह निश्चय हो गया है कि प्राचीन कातन्त्र धातुपाठ का शर्ववर्मा ने पूनः संक्षेप किया था। वर्तमान कातन्त्र व्याकरण भो काशकृत्स्न व्याकरण के संक्षेपी-भूत प्राचीन कातन्त्र व्याकरण का संक्षेप है और यह संक्षेप भी शर्ववर्मा ने किया था । ऐसा मानने पर सातवाहन २० नृपति की वह कथा भी उपपन्न हो जाती है, जिस में शर्ववर्मा द्वारा . छ मास में व्याकरण का ज्ञान करने का उल्लेख है। वृत्तिकार दुर्गसिंह द्वारा पुनः परिष्कार पं० जानकीप्रसाद द्विवेद ने 'कातन्त्र व्याकरण-विमर्श' में लिखा १. इस धातुपाठ के कई हस्तलेख विभिन्न हस्तलेख-संग्रहालयों में विद्यमान २५ है। काशी सरस्वती भवन के एक हस्तलेख की प्रतिलिपि हमारे पास है। एक दूसरे कोश की प्रतिलिपि डा. रामशंकर भट्टाचार्य ने करके हमें भेजी थी। २. हिस्ट्री आफ संस्कृत लिटरेचर, हिन्दी अनुवाद, पृष्ठ ५११ । ३. यह दोर्गवृत्तिसार 'पब्लिकेशन बोर्ड आफ असम' कलकत्ता से सन् १९७७ में पुनः छपा है।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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