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________________ १० संस्कृत-व्याकरण-शास्त्र का इतिहास अर्वाचीन व्याकरण-प्रवक्ताओं में से प्रधानभूत निम्न अठारह वैयाकरणों का वर्णन हमने इस ग्रन्थ के पन्द्रहवें अध्याय में किया है१० - - भद्रेश्वर सूरि ११ - वर्धमान १२ - हेमचन्द्र १३ - मलयगिरि १४ - क्रमदीश्वर ११६ १ - कातन्त्रकार २ - चन्द्रगोमी ३- क्षपणक ४ - देवनन्दी ५ - वामन ६ -- पाल्यकीर्ति - शिवस्वामी ८ - भोजदेव ६ - बुद्धिसागर ७--- १५ - सारस्वतकार १६ – वोपदेव १७ - पद्मनाभ १८ - विनयसागर अब हम अर्वाचीन वैयाकरणों में से जिनके धातुपाठ सम्प्रति उपलब्ध अथवा परिज्ञात हैं, उनके विषय में क्रमशः लिखते हैं ७. कातन्त्रधातु- प्रवक्ता (१५०० वि० पूर्व ) १५ कातन्त्र व्याकरण लोक में कलाप, कलापक, कौमार आदि अनेक नामों से प्रसिद्ध है । कातन्त्र व्याकरण के काल आदि के विषय में हम इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में विस्तार से लिख चुके हैं । कातन्त्र धातुपाठ कातन्त्र व्याकरण का अपना एक स्वतन्त्र धातुपाठ है । इस के २० न्यूनातिन्यून दो पाठ हैं । कातन्त्र धातुपाठ काशकृत्स्न धातुपाठ का संक्षेप – कातन्त्र धातुपाठ काशकृत्स्न धातुपाठ का संक्षेप है, यह हम काशकृत्स्न धातुपाठ के प्रकरण में ( भाग २, पृष्ठ ३४-३५) लिख चुके हैं । २५ कातन्त्र धातुपाठ के हस्तलेख - कातन्त्र धातुपाठ के हस्तलेख प्रति विरल उपलब्ध होते हैं । हमने बड़े प्रयत्न से इस धातुपाठ के दो हस्तलेखों की प्रतिलिपियां प्राप्त की हैं। इन प्रतिलिपियों के प्राप्त होने पर ही हम इस निर्णय पर पहुंचे कि कातन्त्र धातुपाठ काशकृत्स्न धातुपाठ का संक्षेप है । इससे पूर्व हम डा० लिबिश द्वारा प्रकाशित
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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