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११४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास १९-प्रक्रियाकौमुदी रामचन्द्र १४५० वै० लगभग २०-सिद्धान्तकौमुदी भट्टोजि दीक्षित १५७०-१६५० वै० २१-प्रक्रियासर्वस्व नारायण भट्ट १६१७-१७३३ वै०
इनमें से प्रारम्भ के चार ग्रन्थों में धातुपाठ की सम्पूर्ण धातुओं का व्याख्यान नहीं किया है। उत्तरवर्ती दो ग्रन्थों मे यद्यपि सभी धातों के रूप प्रदर्शित किए हैं, तथापि उनमें केवल शुद्ध कर्तप्रक्रिया के हो रूप लिखे हैं। भाव, कर्म, णिजन्त आदि प्रक्रिया के प्रदर्शन के लिए अन्त में कुछ धातुओं के रूप दर्शाए हैं । इन ग्रन्थों में कुछ भी वैशिष्ट्य
नहीं है। १० उपर्युक्त ग्रन्थों पर बहुत से व्याख्या-ग्रन्थ भी लिखे गए। सिद्धान्त
कौमुदी के पठन-पाठन में अधिक प्रचलित होने से इस पर अनेक व्याख्या-ग्रन्थ लिखे गए।
इन ग्रन्थों, इनके लेखकों तथा इन पर टीका-टिप्पणी लिखनेवाले वैयाकरणों के काल आदि विषय में हम इसी ग्रन्थ के 'पाणिनीय १५ व्याकरण के प्रक्रिया-ग्रन्थकार' नामक १६ वें अध्याय (प्रथम भाग)
में विस्तार से लिख चुके हैं । उसका पुन: यहां लिखना पिष्टपेषमात्र होगा । अतः संकेतमात्र करके हम इस प्रकरण को समाप्त करते हैं।
इस प्रकार इस अध्याय में पाणिनीय धातुपाठ और उसके व्याख्यातामों के विषय में लिखकर अगले अध्याय में पाणिनि से अर्वाचीन २० धातुपाठ-प्रवक्ता और उनके व्याख्याताओं के विषय में लिखेंगे।