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________________ २/ १५ धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (२) ११३ कर्म, णिजन्त, सन्नन्त आदि सभी प्रक्रियाओं का निदर्शन अन्त में कतिपय धातु द्वारा ही कराया है। इस प्रक्रिया से अध्ययन करनेवाले छात्रों को सब धातुओं की सभी प्रक्रियाओं के रूप गतार्थ नहीं होते । लेट् लकार का तो छन्दोमात्र गोचर: कह कर निदर्शन करना ही व्यर्थ समझा । स्वामी दयानन्द सरस्वती की महत्ता - दण्डी स्वामी विरजानन्द सरस्वती और उनके शिष्य स्वामी दयानन्द सरस्वती ने पाणिनीय क्रम के पुनरद्धार का जो महान् प्रयत्न किया, उसका उल्लेख हम इसी ग्रन्थ के प्रथम भाग में महाभाष्य के प्रकरण में कर चुके हैं । जिस प्रकार से उन्होंने सम्पूर्ण भारतवर्ष में प्रवृत्त प्रक्रियाग्रन्थानुसारी १० पाणिनीय व्याकरण के पठन-पाठन के विरुद्ध वज्रनिर्घोष करके पुनः पाणिनीय क्रम को प्रतिष्ठित किया, उसी प्रकार स्वामी दयानन्द सरस्वती ने पाणिनीय धातुपाठ की प्राचीन पठन-पाठन शैली के परित्याग से होने वाली महती हानि को जानकर पुनः धातुपाठ की प्राचीन पठन-पाठन - शैली अर्थात् प्रत्येक धातु की सभी प्रक्रियाओं के सभी १५ लकारों के रूपसिद्धिशैली को प्रतिष्ठित किया। उन्होंने सत्यार्थप्रकाश नामक ग्रन्थ में पठन-पाठन - विधि पर लिखते हुए धातुपाठ के प्रसंग में लिखा है इसी प्रकार अष्टाध्यायी पढ़ाके धातुपाठ प्रार्थसहित और दश लकारों तथा प्रक्रियासहित सूत्रों के उत्सर्ग" । तृतीय समुल्लास' । २० इसी प्रकार संस्कारविधि में भी लिखा है ...... " धातुपाठ श्रौर दश लकारों के रूप सधवाना, तथा दश प्रक्रिया भी सधवानी । पुन: । वेदारम्भ संस्कार' । जिन प्रक्रियाप्रन्थों में धातुपाठ का प्रसंगतः व्याख्यान हुआ है, उनके तथा उनके लेखकों के नाम इस प्रकार हैं धर्मकीर्ति १६ - रूपावतार ११४० वै० के लगभग १७- प्रक्रियारत्न १३०० बै० से पूर्व १८ - रूपमाला विमल सरस्वती १४०० बै० से पूर्व १. पृष्ठ 8८, रालाकट्र० संस्क० । २. पृष्ठ १४२, रालाकट्र० संस्क० ३। २५
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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