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धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (२) १११ सायण ने संगम नृपति के राज्यकाल में धातुवृत्ति लिख थी।
तद्यथा
आदि में-अस्तिश्रीसंगमक्ष्मापः पृथिवीतलपुरन्दरः ।
यत्कोतिमौक्तिकमादर्श त्रिलोक्यां प्रतिबिम्बते ।। अन्त में-इति पूर्वदक्षिणपश्चिमसमुद्राधीश्वरकम्पराजसुत- ५ संगममहाराजमहामन्त्रिणा मायणसुतेन माधवसहोदरेण सायणाचार्येण विरचितायां धातुवृत्तौ चुरादयः सम्पूर्णाः ।
इससे विदित होता है कि धातुवृत्ति विक्रम सं० १४१२-१४२० के मध्य किसी समय लिखी गई।
धातुवृत्ति का निर्माण सायण के नाम से जो महतो ग्रन्थराशि उपलब्ध होती है, उसको निरन्तर विजयनगर राज्य के मन्त्रिपद के भार को वहन करते हुए सायण ने ही लिखा हो, यह विश्वासार्ह नहीं है। प्रतीत होता है उसने अपने निर्देश में अनेक सहायक विद्वानों के द्वारा ये ग्रन्थ लिखवाए। यही कारण है कि सायण के नाम से प्रसिद्ध ग्रन्थों में अनेक स्थानों पर १५ परस्पर विरोध भी उपलब्ध होता है। ऐसी अवस्था में सायण ने माधवीया धातुवृत्ति किस विद्वान् के द्वारा लिखवाई, यह जिज्ञासा स्वभावतः उत्पन्न होती है । धातु वृत्ति में दो स्थानों पर ऐसे पाठ उपलब्ध होते हैं, जिनसे प्रतीत होता हैं कि धातुवृत्ति के लेखक का नाम यज्ञनारायण था । यथा१-'क्रमु पादविक्षेपे' सूत्र के व्याख्यान के अन्त में लिखा हैयज्ञनारायणार्येण प्रक्रियेयं प्रपञ्चिता। तस्या निःशेषतस्सन्तु बोद्धारो भाष्यपारगाः ॥ पृष्ठ ६७ । २-इसी प्रकार ‘मव्य बन्धने' सूत्र के अन्त में भी लिखा है
अत्रापि शिष्यबोधाय प्रक्रियेयं प्रपञ्चिता। यज्ञनारायणार्येण बुध्यतां भाष्यपारगः ॥ पृष्ठ १०२।
धातुवृत्ति का वैशिष्ट्य सायण की धातुवृत्ति से प्राचीन मैत्रेयरक्षित और क्षीरस्वामी की दो घातुवृत्तियां सम्प्रति उपलब्ध हैं। ये दोनों संक्षिप्त हैं। इनमें भी
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