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११० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास विषय में निश्चय न होने से हमने हेलाराज को सायण से पूर्व रखा है।
हेलाराजीय लिङ्गानुशासन का वर्णन हम आगे २५वें अध्याय में करेंगे।
१५. सायण ( सं० १३७२-१४४४ वि०) संस्कृत वाङमय में सायण का नाम अत्यन्त प्रसिद्ध है। सायण ने अपने ज्येष्ठ भ्राता माधव के नाम से पाणिनोय धातुपाठ पर एक धातूवृत्ति लिखी है । वह वैयाकरण वाङमय में माधवीया धातुवृत्ति अथवा केवल धातुवृत्ति नाम से प्रसिद्ध है।
संक्षिप्त परिचय सायण ने स्वविरचित विविध ग्रन्थों में अपना परिचय दिया है। तदनुसार इसका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है"--
सायण के पिता का नाम मायण, माता का नाम श्रीमती, ज्येष्ठ भ्राता का नाम माधव, और कनिष्ठ का नाम भोगनाथ था। सायण १५ का भारद्वाज गोत्र तैत्तिरीय संहिता और बोधायन सूत्र था। इसका
जन्म वि० सं० १३७२ में और स्वर्गवास वि० सं० १४४४ में हमा था।
सायण ने ३१ वर्ष की अवस्था में विजयनगर के महाराजा हरिहर प्रथम के अनुज कम्पण (वि० सं० १४०३-११२) का मन्त्रिपद अलंन कृत किया था। तत्पश्चात् कम्पण पुत्र संगम का शिक्षक तथा मन्त्रिपद
(वि० सं० १४१२-१४२०) स्वीकार किया। तदनन्तर बुक्क प्रथम (वि० सं० १४२१-१४३७) का तथा हरिहर द्वितीय (वि० सं० १४३८-१४४४) का अमात्यपद सुशोभित किया।
धातुवृत्ति का निर्माण-काल २५ धातुवृत्ति के आदि और अन्त के पाठों से विदित होता है कि
१. जो महानुभाव सायण माधव के विषय में अधिक विस्तार से जानना चाहते हैं, वे श्री पं० व तदेव उपाध्याय विरचित 'प्राचार्य सायण और माषव' ग्रन्थ देखें।