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________________ धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (२) १०६ पाठ नहीं है । भोजीय सरस्वतीकण्ठाभरण व्याकरण की व्याख्या का नाम भी पुरुषकार है । वह अभी तक प्रमुद्रित है । अतः उसमें उक्त पाठ है वा नहीं, यह हमें ज्ञात नहीं । यदि पुरुषकार कृष्ण लीलाशुक मुनि प्रणीत ग्रन्थ ही हो, तत्र आत्रेय की पूर्व सीमा वि० सं० १२२५ होगी । इस वस्था में धातुवृत्ति के पूर्व उद्धृत श्रात्रेय मैत्रेययोः, आत्रेयमैत्रेयाभ्याम् पाठों में आत्रेय का पूर्वनिपात प्रजाद्यजन्तम् (श्रष्टा० २२|३३) नियम से जानना चाहिए, न कि काल के पौर्वापर्य से । माधवीया धातुवृत्ति में एक पाठ है त्र केचिदसंयोगादि तीभ इति दीर्घान्तं चतुर्थमपि पठन्ति इत्यात्रेयः । पृष्ठ २८५ । १० इस उद्धरण की क्षीरतरङ्गिणी के तिम तिम ष्टिम प्रार्दोभावे (४।१५) सूत्र के साथ तुलना करने से प्रतीत होता है कि यहां आत्रेय 'केचित् ' पद से क्षीरस्वामी का निर्देश करता है । क्षीरस्वामी का काल १११५-११६५ वि० के मध्य है यह हम पूर्व लिख चुके हैं। यदि कथंचित् प्रमाणान्तर से यह सिद्ध हो जाये कि पूर्व उद्धरण में स्मृत १५ पुरुषकार कृष्ण लीलाशुक मुनि का ग्रन्थ नहीं है, तो आत्रेय की पूर्वसीमा १९६५ वि० होगी । १४. हेलाराज (१३५० वि० से पूर्व ) हेलाराज नाम के किसी वैयाकरण ने पाणिनीय धातुपाठ पर कोई वृत्ति लिखी थी । इस वृत्तिकार का उल्लेख माधवीया धातुवृत्ति २० में मिलता है— 'स्वामी संहितायां धातुपाठाद् 'वा' शब्दमुत्तरधातुशेषं वष्टि । तन्निपातस्य वा शब्दस्य 'च' शब्दादिवत् पूर्वप्रयोगो नेति हेलाराजी - यादौ समर्थनाद् प्रयुक्तम् । पृष्ठ ३९७ । इस उद्धरण में स्मृत हेलाराज वाक्यपदीय का टीकाकार हेला- २५ राज है वा उससे भिन्न, यह अज्ञात है । यदि यह वाक्यपदीय का टीका काही होवे तो इस का काल ११वीं शती का उत्तरार्ध होगा । इस २. ‘पत गतौ वा पश अनुपसर्गात् ' ( क्षीर० १० २४६ - २५०) धातुसूत्रे ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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