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धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (२)
१०७ आगम के स्थान में 'यिट्' पाठ पाणिनीय व्याकरणनुसार बदल दिया हो ।
३ - केनोपनिषद् - व्याख्या--कृष्ण लीलाशुक मुनि ने केन उपनिषद् पर शङ्करहृदयङ्गमा नामक एक व्याख्या लिखी थी । इसका एक हस्तलेख मद्रास के राजकीय हस्तलेख संग्रह में विद्यमान है । उसका निर्देश सूचीपत्र भाग ४ खण्ड १ A के पृष्ठ ४२६७ पर है । इस हस्तलेख के अन्त में निम्न पाठ है
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'श्रीकृष्णलीलाशुकपुनिविरचितायां शङ्करहृदयङ्गमाख्यायां केनो
पनिषद्व्याख्यायाम्
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४ - कृष्णलीलामृत - यह कृष्णलीलापरक स्तोत्र ग्रन्थ है | ५- प्रभिनव कौस्तुभ माला ।
६ - दक्षिणामूर्तिस्तव - देव पुरषकार के सम्पादक गणपति शास्त्री का मत है कि ये दोनों ग्रन्थ भी कृष्ण लीलाशुक मुनि विरचित हैं । इन ग्रन्थों के भी अन्त में ' इति कृष्णलीलाशुकमुनि इत्यादि पुरुषकारसदृश हो पाठ उपलब्ध होता है ।
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१४. काश्यप (सं० १२५० - १३०० वि० )
माधवीया धातुवृत्ति में असकृत् काश्यपनामा व्याकरण के धातुवृत्ति - विषयक मत उद्धृत हैं । इस से काश्यप ने कोई धातुवृत्ति रचा थी, यह स्पष्ट है । इसका निश्चित काल ज्ञात है ।
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इस वृत्ति के जो पाठ माधवीया धातुवृत्ति में उद्धृत हैं उनसे प्रायः यही प्रतीत होती है कि किसी काश्यप ने पाणिनीय धातुपाठ पर वृत्ति लिखी थी ।
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आगे हम चान्द्र धातुपाठ के प्रकरण में चान्द्र धातुपाठ के वृत्तिकार कश्यपभिक्षु का उल्लेख करेंगे। हमारे विचार में काश्यप एक वचनातशब्द से उस का निर्देश नहीं हो सकता। हां, काश्यपाः बहुवचनान्त २५ से निर्देश किया होता तो कश्यप के मतानुयायियों का ग्रहण सम्भव है । परन्तु सायादि ने एकवचनान्त काश्यप शब्द का ही प्रयोग किया है।
१५. आत्रेय (सं० १२५० - १३५० )
सायणाचार्य ने अपनी माधवीया धातुवृत्ति में आत्रेय के मत बहुधा