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________________ २/१४ घातुपाठ के प्रचक्ता और व्याख्याता (२) १०५ अर्थात् देवनामक विद्वान् द्वारा अनेक विकरणों वाली सरूप धातुओं का देव नामक व्याख्यान समाप्त हुआ। यह ग्रन्थ श्लोकात्मक है । इसमें २०० श्लोक हैं। परिचय देव नामक विद्वान् ने किस देश वा नगर अथवा किस काल में ५ जन्म लिया था, यह अज्ञात है। दैव ग्रन्थ के सम्पादक गणपति शास्त्री ने देव का काल खीस्ताब्द की नवम शताब्दी से वारहवीं शताब्दी के मध्य माना है। हमारा अनुमान है कि देव ने विक्रम की बारहवीं शती के अन्तिम चरण में 'दैव' ग्रन्थ लिखा था । हमारे इस अनुमान में निम्न हेतु हैं १-क्षीरस्वामी ने 'दैव' ग्रन्थ अथवा उसके ग्रन्थकार को कहीं । स्मरण नहीं किया। क्षीरस्वामो का काल वि० सं० ११६५ पर्यन्त है, यह हम पूर्व लिख चुके हैं। २–दैव के व्याख्याता कृष्ण लीलाशुक मुनि ने ऐसा निर्देश किया है, जिससे विदित होता है कि देव मैत्रेयरक्षित का अनुसरण करता । है। यथा (क) देवेन तु 'ष्ट वेष्टने स्तायति तिष्टापयति' इति मैत्रेयरक्षितोक्ततकारविस्रम्भान्नायमनुसृतः । पृष्ठ २० ॥' ( ख ) देवेन तु मैत्रेयरक्षितवित्रम्भादेतदुक्तम् । पृष्ठ २५ ॥ (ग ) प्राप्लु लम्भने इत्यत्र मैत्रेयरक्षितेन प्रापयत इत्यात्मने- २० पदमप्युदाहृतम उपलभ्यते । दैववशात्त तस्यापि नैतदस्तीति प्रतीयते । तदनुसारेण हि प्रायेण देवः प्रवर्तमानो दृश्यते । पृष्ठ ८८ ॥ इनसे स्पष्ट है कि देव मैत्रेयरक्षित से उत्तरकालीन हैं। इसलिए देव का काल सामान्य रूप से ११५०-१२०० के मध्य ही माना जा सकता है। २५ १. दैव पूरुषकार की यहां उदध्रियमाण पृष्ठ संख्या हमारे सस्करण की है। २. मुद्रित धातुप्रदीप (पृष्ठ १४६) में प्रात्मनेपद उपलब्ध नहीं होता। सम्भव है पाठभ्रंश हो गया हो। सायण ने भी धातुवृत्ति (पृष्ठ ३२६) में लिखा है- 'मैत्रेयेणापयत इत्यात्मनेपदमपि दर्शितम् ।'
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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