________________
धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता ( २ )
१०३
११ हरियोगी (१२०० वि० लगभग)
हरियोगी नामक किसी विद्वान् ने पाणिनीय धातुपाठ पर शाब्दि - काभरण नामक एक व्याख्या लिखी हैं । इसका हस्तलेख मद्रास के राजकीय हस्तलेखसंग्रह में विद्यमान है ( सूचीपत्र भाग ५, खण्ड १A, संख्या ४३१४, पृष्ठ ६३४५) । इसका दूसरा हस्तलेख ट्रिवेण्ड्रम के ५ राजकीय पुस्तकालय में है ( सूचीपत्र भाग १, संख्या ६५, सन् १६१२ ) ।
परिचय - हरियोगी का वंशादिवृत्त अज्ञात हैं । मद्रास राजकीय पुस्तकाल के पूर्वनिर्दिष्ट हस्तलेख के अन्त में
'इति हरियोगिनः प्रोलनाचार्यस्य कृतौ शाब्दिकाभरणे शब्विकरण १० भूवादयो धातवः समाप्ताः ।'
पाठ उपलब्ध होता है । इसमें हरियोगी के पिता का नाम प्रोलनाचार्य लिखा है ।
मद्रास राजकीय हस्तलेख संग्रह के सूचीपत्र भाग २ खण्ड १A, संख्या १२८९, पृष्ठ १६१७ पर इसका एक हस्तलेख और निर्दिष्ट है । १५ उसके अन्त में
'इति हरियोगिनः शैलवाचार्यस्य कृतौ शाब्दिकाभरणे धातुप्रत्ययपञ्जिकायां सौत्रधातवः समाप्ताः ।'
पाठ मिलता हैं । इन पाठ में पिता का नाम शैलवाचार्य लिखा
| अतः द्विविध पाठ की उपलब्धि के कारण हरियोगी के पिता का २० नाम क्या था, यह निश्चय रूप से कहना अशक्य है ।
काल - हरियोगी के ग्रन्थ का अवलोकन न करने से इसके काल आदि के विषय में निश्चित रूप से कुछ कहना कठिन है । कृष्ण लीलाशुकमुनि - विरचित दैव व्याख्यान पुरुषकार में हरियोगी का निम्न स्थानों में उल्लेख मिलता है
२५
१ - श्रातेरनुकरणमिति हरियोगी । पृष्ठ १९ ॥
२ - हरियोगी तु प्रत्र 'संज्ञापूर्वको विधिरनित्यः' इत्येतदनादृत्य क्षेणोतीत्युदाहार्षीत् । पृष्ठ २१ ।।
३ - धनपालहरियोगिपूर्णचन्द्रास्तु दरतीत्येवाहुः । पृष्ठ ३७ ॥