________________
संस्कृत व्याकरण - शास्त्र का इतिहास
विद्वत्ता - मैत्रेयरक्षित व्याकरणशास्त्र का असाधारण विद्वान् था । इसने न्यास पर 'तन्त्रप्रदीप' नाम्नी जो विपुल व्याख्या रची हैं, उससे इसकी असाधारण विद्वत्ता का परिचय अनायास प्राप्त होता है । मैत्रेय रक्षित ने धातुप्रदीप के अन्त में स्वयं भी कहा है
१०२
वृत्तिन्यासं समुद्दिश्य कृतवान् ग्रन्थविस्तरम् । नाम्ना तन्त्रप्रदीपं यो विवृतास्तेन धातवः ॥ १ ॥
प्राकृष्य भाष्यजलधेरथ धातुनामपारायणक्षपणपाणिनिशास्त्रवेदी । कालापचान्द्रमततत्त्व विभागदक्षो धातुप्रदीपमकरोज्जगतो हिताय ॥२॥
अर्थात् - जिसने वृत्ति ( काशिका) पर लिखे गए न्यास को उद्देश्य १० करके भाष्यरूपी समुद्र से [ शास्त्र -तत्त्व को ] निकाल कर तन्त्रप्रदीप नामक विस्तृत ग्रन्थ रचा, उसने घातुम्रों का व्याख्यान किया है । धातुपारायण, नामपारायण क्षपणक और पाणिनीय शास्त्र के जानने वाले, कालाप तथा चान्द्रमत के तत्त्वविभाग में दक्ष [ मैत्रेय ने ] जगत् के हित के लिए धातुप्रदीप ग्रन्थ बनाया ।
१५
परिभाषावृत्तिकार सीरदेव ने भी लिखा है
'तस्माद् बोद्धव्योऽयं रक्षितः, बोद्धव्याश्च विस्तरा एव रक्षितग्रन्था विद्यन्ते ।' पृष्ठ ५, परिभाषा-संग्रह, पूना, पृष्ठ २१५ ।
अन्य ग्रन्थ - मैत्रेयरक्षित ने धातुप्रदीप के अतिरिक्त न्यास पर तन्त्रप्रदीप नाम्नी विस्तृत व्याख्या लिखी है । इसके विषय में हम पूर्व २० 'काशिका के व्याख्याता' प्रकरण में विस्तार से लिख चुके हैं । इसके अतिरिक्त मैत्रेय ने कदाचित् महाभाष्य का भी व्याख्यान किया था । इसके लिए इसी ग्रन्थ का प्रथम भाग में 'महाभाष्य के टीकाकार' प्रकरण देखें ।
धातुप्रदीप- टीकाकार
२५
किसी अज्ञातनामा विद्वान् ने मैत्रेयरक्षित विरचित धातुप्रदीप पर कोई टीका ग्रन्थ लिखा था । इस टीका के कई उद्धरण सर्वानन्द ने अमरकोश की टीका सर्वस्वव्याख्या में दिए हैं । सर्वानन्द का टीका - सर्वस्व लिखने का काल वि० सं० १२९६ है । अतः धातुप्रदोपटीका का रचनाकाल वि० सं० १९६० - १२१५ के मध्य होना चाहिए ।