________________
१००
संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
प्रतीत होता है कि वेङ्कट रङ्गनाथ स्वामी के हस्तलेख का आधार अडियार का हस्तलेख होगा। अथवा दोनों का कोई एक मूल आधार रहा होगा।
यह क्षीरकृत ग्रन्थ सूत्रबद्ध है, उस पर तिलक की वृत्ति है।
३-गणवृत्ति-यह गणपाठ को व्याख्या प्रतीत होती है। इसका हस्तलेख अभी तक अज्ञात है।
४-अमृततरङ्गिणी - इसका निर्देश क्षीरतरङ्गिणी में इस प्रकार उपलब्ध होता है
'कर्मयोगामृततर्राङ्गण्याप्रत्ययोऽकर्मकाद् भावे कर्मणि वा स्यात् सकर्मकात् । सकर्मकाकर्मकत्व द्रव्यकर्मनिबन्धनम् ॥' १३१, पृष्ठ ७ । इस पर पाठान्तर है'यन्ममैवामृततरङ्गिण्यामुक्तम्-प्रत्ययो....." बन्धनम् ।'
इस उद्धरण से प्रतीत होता है कि अमृततरङ्गिणी का दूसरा १५ नाम कर्मयोगामृततरङ्गिणी भी है। यह ग्रन्थ व्याकरणशास्त्र-सम्बन्धी प्रतीत होता है।
ऐसी अवस्था में क्षीरस्वामी की शेष एक वृत्ति किस ग्रन्थ पर थी, यह अज्ञात है।
क्षीरस्वामी का अन्य ग्रन्थ नाट्यदर्पण पृष्ठ १५५ (बड़ोदा सं०) में निम्न पाठ है
यथा क्षीरस्वामिविरचितेऽभिनवराघवेस्थापकः--(सहर्षम्) प्रार्ये चिरस्य स्मृतम् ।
अस्त्येव राघवमहीनकथापवित्रम् काव्यं प्रबन्धघटनाप्रथितप्रथिम्नः । भटृन्दुराजचरणाब्जमनुव्रतस्य
क्षीरस्य नाटकमनन्यसमानसारम् ॥ यह क्षीरस्वामी पूर्वनिर्दिष्ट क्षोर से भिन्न है अथवा अभिन्न, यह अज्ञात है । यदि उपर्युक्त श्लोक में स्मृत भट्ट इन्दुराज ही क्षोरस्वामी द्वारा क्षीरतरङ्गिणी (पृष्ठ ७) में स्मृत भट्ट शशाङ्कधर है,