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२/१३ धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (२) ९७
इन कतिपय उद्धरणों से व्यक्त है कि क्षीरस्वामी मैत्रेयरक्षित से प्राचीन है।
६-क्षीरस्वामी क्षीरतरङ्गिणी और अमरकोशटीका में श्रीभोज और उसके सरस्वतीकण्ठाभरण को बहुधा उद्धृत करता है। भोज का काल सं० १०७५-१११० है । यजुर्वेद का भाष्य उवट ने भोज के ५ राज्यकाल में उज्जैन में रहते हुए लिखा है
ऋप्यादींश्च नमस्कृत्य अवन्त्यामुवटो वसन्। मन्त्राणां कृतवान् भाष्यं महीं भोजे प्रशासति ॥ भाष्यान्ते। उवट यजुः २५।८ के भाष्य में क्षीरस्वामी-विरचित अमरकोश २।६।६५ की टीका को उद्धृत करता है
हृदयस्य दक्षिणे यकृत् क्लोम वामे प्लीहा पुप्फुसश्चेति वैद्यः (?, वैद्याः) इति क्षीरस्वामी। ___ इस उद्धरण से स्पष्ट है क्षीरस्वामी निश्चित ही वि० सं० १११० से पूर्ववर्ती है।
क्षीरस्वामी स्वीकृत धातुपाठ कश्मीर-वास्तव्य क्षीरस्वामी ने पाणिनीय धातुपाठ के औदीच्य पाठ पर अपनी वृत्ति लिखी है, यह हम पूर्व (पृष्ठ ६६) लिख चुके हैं।
क्षीरस्वामी द्वारा पाणिनीय धातुपाठ का सम्पादन -पूर्व पृष्ठ १२ पर 'भट्टयज्ञेश्वरस्वामिपुत्रक्षीरस्वाम्युत्प्रेक्षितायां...' पाठ उद्धृत किया है । भण्डारकर प्राच्यविद्या शोध-प्रतिष्ठान में सुरक्षित शारदा २० लिपि में लिखे गये क्षीरतरङ्गिणी के हस्तलेखों के अन्त में इस प्रकार पाठ मिलता है
क्षीरस्वाम्युत्प्रेक्षितधातुपाठे क्षीरतरङ्गिण्यां चुरादिगणः सम्पूर्णः ।'
इससे विदित होता है कि क्षीरस्वामी ने पाणिनीय धातुपाठ का अपनी दृष्टि से सम्पादन भी किया था।
क्षोरतरङ्गिणी का हमारा संस्करण जर्मन विद्वान् लिबिश ने क्षीरतरङ्गिणी का रोमन अक्षरों में जो
१. द्र० हस्तलेख सूचीपत्र, सन् १९३८, संख्या २२६,२२७ । १८७५-७६ ।