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________________ धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (२) । प्रतीत होता है कि क्षीरस्वामी संभवतः कश्मीर प्रदेश का निवासी था । क्षीरस्वामी का कठशाखाध्यायी होना भी इस अनुमान का पोषक है। प्राचीन काल में कठशाखाध्येता ब्राह्मण कश्मीर में ही निवास करते थे। काल-क्षीरस्वामी किस काल में हुआ, यह निश्चित रूप से नहीं ५ कहा जा सकता । तथापि उसके काल के परिच्छेदक निम्न प्रमाण हैं १–एक क्षोर नामक शब्दविद्योपाध्याय कवि कह्णण कृत राजतरङ्गिणी में स्मृत है 'देशान्तरादागमय्याथ व्याचक्षाणान् क्षमापतिः । प्रावर्तयद् विच्छिन्नं महाभाष्यं स्वमण्डले ॥ क्षीराभिधानाच्छब्दविद्योपाध्यायात् सम्भृतश्रुतः । बुधैः सह ययौ वृद्धि स जयापोडपण्डित: ।।४।४८८,४८६॥ अर्थात्-जयापीड नृपति ने देशान्तर से क्षीरसंज्ञक शब्दविद्योपाध्याय को बुलाकर अपने मण्डल (कश्मीर) में विच्छिन्न महाभाष्य को पुनः प्रवृत्त किया । ___ कश्मीर-नपति जयापीड का राज्यकाल वि० सं० ८०८-८३६ पर्यन्त माना जाता है । क्षीरस्वामी ने क्षीरतरङ्गिणी और अपरकोश को टीका में श्रीभोज और उसके सरस्वतीकण्ठाभरण को बहधा उदधत किया है। भोज का काल सं० १०७५-१११० है। यजुर्वेदभाष्य में उव्वट ने भी महीं भोजे प्रशासति लिखा है । उव्वट यजुः २५।८ में २० क्षीरस्वामी को उद्धृत करता है।' अतः क्षीरस्वामी का काल सं० ११०० लगभग के होना चाहिये। इसलिए यह क्षीरस्वामी कह्मण द्वारा स्मृत क्षीरसंज्ञक वैयाकरण से भिन्न है, यह स्पष्ट है। २–वर्धमान ने वि० संवत् ११६७ में स्वविरचित गणरत्न-महो- २५ दधि में क्षीरस्वामी को दो बार उद्धृत किया है (क) ज्योतींषि ग्रहनक्षत्रादीनि वेत्ति ज्योतिषिक इति वामनक्षीरस्वामिनौ । ४।३०३, पृष्ठ १८३ ॥ १. देखो आगे पृष्ठ ६७ पर संख्या ६ का सन्दर्भ ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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