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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास में उद्धृत कौशिक के मतों के लिये क्षोरतरङ्गिणी के हमारे संस्करण के अन्त में पृष्ठ ३५४ देखें।
१०--क्षीरस्वाभी (११०० के लगभग) क्षीरस्वामी नामक शब्दशास्त्रनिष्णात व्यक्ति ने पाणिनीय धातुपाठ के औदीच्य पाठ पर क्षीरतरङ्गिणी नाम का एक वृत्तिग्रन्थ लिखा है। इस ग्रन्थ को प्रथमवार प्रकाश में लाने का श्रेय जर्मन विद्वान् लिबिश को है । उसने इस ग्रन्थ को रोमन अक्षरों में प्रकाशित किया था। उसके चिरकाल से उत्सन्न हो जाने पर उसी के आधार पर
इसका एक संस्करण हमने प्रकाशित किया है। यह रामलाल कपूर १० ट्रस्ट (बहालगढ़) की ग्रन्थमाला में छपा है।
परिचय क्षीरस्वामी ने क्षीरतरङ्गिणी और अमरकोशोद्घाटन में अपना कुछ भी परिचय नहीं दिया । अतः इस महावैयाकरण का वृत्तान्त
सर्वथा अज्ञात है। १५ पितृनाम-क्षीरतरङ्गिणी में भ्वादि और अदादि गण के अन्त में
___ भटेश्वरस्वामिपुत्रक्षीरस्वाम्युत्प्रेक्षितायां......। पाठ उपलब्ध है। इससे विदित होता है कि क्षीरस्वामी के पिता का नाम भट्ट ईश्वरस्वामी था। शाखा-क्षीरस्वामी ने यज धातु की व्याख्या में लिखा है
यजुः काठकम् । १७२६॥ एकसौ एक शाखावाले यजुर्वेद में यजूः के उदाहरण-प्रसंग में काठक नाम का उल्लेख करना सूचित करता है कि क्षीरस्वामी सम्भवतः काठक शाखाध्येता था।
देश-क्षीरस्वामी ने अपने जन्म से भारत के किस प्रान्त, नगर २५ वा ग्राम को अलङ्कृत किया, इसका कुछ भी साक्षात् परिचय नहीं
मिलता । क्षीरतरङ्गिणी और अमरकोश के प्रारम्भ में वाग्देवी की प्रशंसा करने से तथा क्षीरतरङ्गिणी के अन्त में दृश्यमान श्लोक' से १. काश्मीरमण्डलभुवं जयसिंहनाम्नि विश्वम्भरापरिवृढे दृढदीर्घदोष्णि । शासत्यमात्यवरसूनुरिमां लिलेख भक्तया द्रविणवानपि धातुपाठम् ॥