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धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (२) ६१ दीर्घत्वे सूक्षणमिति राजश्रीधातुवृत्तिः ।
इस राजश्री-धातुवृत्ति का लेखक कौन था, यह अज्ञात है । सम्भव है लेखक का नाम राजश्री हो । यह धातुवृत्ति क्षीरस्वामो से पूर्वभावी है अथवा उत्तरवर्ती, यह अज्ञात है।
८-नाथीय धातुवृत्ति (१२१५ वि० पू०) सर्वानन्द ने अमरटीका सर्वस्व २।६।१०० में लिखा हैनाथीयधातुवत्तावपि कोषवन्मूर्धन्यषत्वं तालव्यत्वं चोक्तम् ।
भाग २, पृष्ठ ३६० । इस नाथीय धातुवृत्ति के लेखक का नाम अज्ञात है। इस का सम्बन्ध किस व्याकरण के साथ है, यह भी अज्ञात है।
रमानाथ-विरचित कातन्त्र धातुवृत्ति का वर्णन हम अगले अध्याय में करेंगे । पदैकदेश न्याय से रमानाथविरचित धातुवृत्ति भी नाथीय नाम से व्यवहत हो सकती है, परन्तु रमानाथ का काल १५६३ विक्रम सं० है, यह हम उसी कातन्त्र धातुपाठ के प्रकरण में लिखेंगे। अतः इस धातूवृत्ति का रमानाथ के साथ सम्बन्ध नहीं हो सकता। १५ ___ सरस्वतीकण्ठाभरण के टीकाकार दण्डनाथ को प्रक्रियासर्वस्वकार प्रायः 'नाथ' नाम से उद्धृत करता है। अतः यह वृत्ति दण्डनाथ की हो सकती है। इस अवस्था में यह सरस्वतीकण्ठाभरण से सम्बद्ध धातुपाठ की मानी जा सकती है।
8-कौशिक (१०५० वि० पु०) क्षीरस्वामी ने क्षीरतरङ्गिणी में अनेक स्थानों पर कौशिक नाम से किसी धातुपाठ के वृत्तिकार के मत उद्धृत किये हैं । उद्धरणों से यही प्रतीत होती है कि कौशिक की वृत्ति पाणिनीय धातुपाठ पर लिखो गई होगी। क्षीरतरङ्गिणी से उत्तरवर्ती वृत्तिकारों ने भी इस के अनेक मत स्व-स्व ग्रन्थों में उद्धृत किये हैं।
इससे अधिक हम इस विषय में कुछ नहीं जानते । क्षीरतरङ्गिणी
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. १. प्रक्रियासर्वस्व, मद्रास संस्क०, द्र० सूत्र ६४,२१६, ५३४,५७२,७६५, ६६४, १०१०, १०२१, १०२३ ॥