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________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ___१-क्रियारत्नसमुच्चय का लेखक गणरत्न सूरि (संवत् १४६६) लिखता है अचि-अदि-तपि-वदि-मृयषः परस्मैपदिन इति भीमसेनीयाः । क्रियारत्नसमुच्य पृष्ठ २८४ । अर्थात्-अचि अदि तर्पि वदि मृषि ये परस्मैपदी हैं, ऐसा भीमसेनप्रोक्त ग्रन्थ के अध्येता मानते हैं । २-सर्वानन्द (सं० १२१५ ) अपने अमरटीका-सर्वस्व नामक व्याख्यान में लिखता हैं-- अर्ब पर्ब बबे कर्ब खर्ब गर्ब मर्ब सर्ब चर्ब गतौ इत्ययमपि भूवादी १० भीमसेनेन पवर्गान्तप्रकरणे पठितः ।' अमरटीका सर्वस्व १।११७, भाग १, पृष्ठ ८। अर्थात्-भीमसेन ने अर्ब आदि धातुओं को स्वादि गण में पवर्गान्त प्रकरण में पढ़ा है। ३-सर्वाननन्द से प्राचीन मैत्रेयरक्षित (सं० ११६५) धातुप्रदीप १५ के आदि में भीमसेन को स्मरण करता है बहुशोऽभून् यथा भीमः प्रोक्तवांस्तद्वदागमात् ।। ४--मैत्रेय से भी बहुत प्राचीन उमास्वाति-भाष्य का व्याख्याता सिद्धसेन गणी लिखता है-- भीमसेनात् परतोऽन्यैवैयाकरणेरर्थद्वयेऽपठितोऽपि .......।' पृष्ठ २९४ । ५-भट्रोजिदीक्षित, नागेश भट्ट आदि का मत हैं वि पाणिनीय धातुपाठ के अर्थों का निर्देश भीमसेन ने किया है (प्रमाण पूर्व पृष्ठ ६३ पर उद्धृत कर चुके )। ६–भीमसेन धातुपाठ के हस्तलेख अनेक हस्तलेख-संग्रहों में विद्यमान हैं । एक हस्तलेख लाहौर के दयानन्द महाविद्यालय के अन्तर्गत २५ लालचन्द पुस्तकालय में था (लालचन्द पुस्तकालय के हस्तलेख सम्प्रति १. टीकासर्वस्व में ये घातुएं वकारान्त ( अन्तस्थान्त ) छपी हैं। वह मुद्रणदोष है। २.-इसकी व्याख्या पूर्व (पृष्ठ ६३) कर चके हैं। ३.- इस उद्धरण का निर्देश भी पहले (पृष्ठ ६४ ) कर चुके हैं ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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