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धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्यात (२) ८५ अर्थात्-सुनाग के शिष्य कर्म में प्रयुक्त निष्ठा में शक धातु से दिकल्प से इट् चाहते हैं और असु क्षेपे से भाव में ।
२-इसी सौनाग मत का निर्देश सायण ने अनेक स्थानों पर किया है।
३-क्षीरतरङ्गिणी के आदि और अन्त में धात्वर्थसंबन्धी सौनाग ५ मत इस प्रकार उद्धृत है
धातूनामर्थनिर्देशोऽयं निदर्शनार्थ इति सौनागाः । यदाहुः-- क्रियावाचित्वमाख्यातुमेकोऽत्रार्थः प्रदर्शितः । प्रयोगतोऽनुगन्तव्या अनेकार्था हि धातवः ॥' अर्थात्-धातुओं का अर्थ-निर्देश निदर्शनार्थ है, ऐसा सौनागों का १० मत है। जैसा कि कहा है-यहां धातुओं का क्रियावाचित्व दर्शाने के लिए एक अर्थ लिखा है। धातुएं अनेकार्थ हैं, उनके अर्थ प्रयोग से जानने चाहिएं। __ वामन और क्षीरस्वामी द्वारा उद्धृत मत धातुपाठविषयक ही हैं, यह स्पष्ट है । इन मतों का प्रतिपादन भगवान् सुनाग ने कहां किया १५ था, यह उद्धर्ता लोगों ने नहीं बताया। इनमें प्रथम मत उसके वार्तिक पाठ में भी निर्दिष्ट हो सकता है, परन्तु क्षीरस्वामी द्वारा उद्धृत मत का निर्देश उसके धातव्याख्यान में ही संभव है, अन्यत्र नहीं। इससे अनुमान होता है कि प्राचार्य सुनाग ने भी पाणिनीय धातुपाठ पर किसी व्याख्यान का प्रवचन किया था।
३-भीमसेन किसी भीमसेननामा वैयाकरण का पाणिनीय धातुपाठ के साथ कोई महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध था, यह अनेक ग्रन्थकारों के वचनों से स्पष्ट विदित होता हैं । यथा
१. शक घातु, पृष्ठ ३०१; अस धातु, पृष्ठ ३०७; शक्ल घातु, पृष्ठ २५ ३२६। २. क्षीरत० पृष्ठ ३, ३२३ हमारा संस्क० । चुरादि (पृष्ठ ३२३) में द्वितीय चरण 'एककोऽर्थो निदर्शितः' है और तृतीय चरण 'प्रयोगतोऽनुमातव्याः' है। यह श्लोक चान्द्र धातुपाठ के अन्त में भी उपलब्ध होता है। वहां तृतीय चरण का पाठ 'प्रयोगतोऽनुगन्तव्या: है।