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८४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
वक्ष्यति चपाठमध्येऽनुदात्तानामुदात्तः कथितः क्वचित् । अनुदात्तोऽप्युदात्तानां पूर्वेषामनुरोधतः ॥ क्षीरत० १३ १४६ ॥
यहां वक्ष्यति क्रिया का कर्ता कौन है, यह क्षीरस्वामी ने व्यक्त ५ नहीं किया। क्षीरस्वामी के वाक्यविन्यास प्रकार से हमारा अनुमान
है कि वक्ष्यति क्रिया का कर्ता भगवान् पाणिनि ही है । उसने धातुपाठ का प्रवचन करके उसको व्याख्या समझाने के लिए जो वृत्ति लिखो होगी, अथवा पढ़ाई होगी, उसी में उक्त श्लोक रहा होगा।
किन्हीं प्राचार्यों का मत है कि धातुपाठ का अर्थ-निर्देश पाणिनि ने १० स्ववृत्ति में किया था।
२-सुनाग महाभाष्य में सोनाग वातिक बहुत्र पठितहैं।' हरदत्त के वचनानुसार इन वार्तिकों का प्रवक्ता सुनाग नाम का प्राचार्य है।'
यह भगवान् कात्यायन से अर्वाचीन है, ऐसा कयट के लेख से व्यक्त १५ होता है। प्राचार्य सुनाग के काल आदि के सम्बन्ध में हम इस ग्रन्थ
के आठवें अध्याय में लिख चुके हैं। (द्र० अष्टाध्यायी के वार्तिककार प्रकरण)
वार्तिकों के प्रवचनकर्ता सुनाग ने पाणिनीय धातुपाठ पर भी कोई व्याख्यान लिखा था, यह कतिपय प्रमाणों से जाना जाता है।
२० यथा
१- काशिका में विभाषा भावादिकर्मणोः (७।२।१७) सूत्र की व्याख्या में वामन लिखता है
सौनागाः कर्मणि निष्ठायां शकेरिटमिच्छन्ति विकल्पेन अस्यतेर्भाव।
२५
१. महाभाष्य २।२।१८; ३ । २। ५६; ४।१।७४, ८७; ४।३। १५६, ६।१।९५॥ २. सुनागस्याचार्यस्य शिष्याः सौनागाः । पदमञ्जरी ७।२।१६; भाग २, पृष्ठ ७६१॥
३. कात्यायनाभिप्रायमेव प्रदर्शयितु सौनागैर्विस्तरेण पठितमित्यर्थः । भाष्यप्रपीप २।२। ३८॥