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धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (२)
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१-पाणिनि भगवान् पाणिनि ने शब्दानुशासन का प्रवचन करते हुए अष्टाघ्यायी के सूत्रों की कोई वृत्ति भी अवश्य बताई, यह हम अनेक सुदृढ़ प्रमाणों के आधार पर इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में अष्टायायो के वत्तिकार प्रकरण में लिख चुके । इसी प्रकार पाणिनि ने अपने धातु- ५ पाठ का प्रवचन करते हुए उसकी भी कोई वृत्ति शिष्यों को अवश्य पढ़ाई होगी, यह अनुमान स्वतः ही उत्पन्न होता है। विना वत्ति बताए सूत्रग्रन्थ का प्रवचन सर्वथा अशक्य है। इतना ही नहीं, हमारे अनुमान के उपोद्वलक अनेक प्रमाण भी उपलब्ध होते हैं। यथा
१-जिस प्रकार पाणिनि ने अष्टाध्यायी का प्रवचन करते समय १० किन्हीं शिष्यों को किसी प्रकार सूत्रपाठ वताया और दूसरे समय अन्य शिष्यों को दूसरी प्रकार का सूत्रपाठ बताया। तथा किन्हीं शिष्यों को किसी सूत्र की कोई वृत्ति बताई, अन्यों को उसो सूत्र की दूसरी प्रकार से वृत्ति समझाई। इसी प्रकार धातुपाठ के प्रवचनकाल में भी किन्हीं शिष्यों को तप ऐश्वर्ये वा, वतु वरणे इस प्रकार सूत्रविच्छेद बताया, १५ अन्यों को दूसरे समय तप ऐश्वर्य, वावृतु वरणे इस प्रकार पढ़ाया। इसी परम्परा को ध्यान में रखकर आचार्य सायण ने लिखा है। अस्माकं तूभयमपि प्रमाणण उभयथा शिष्याणां प्रतिपादनात् ।
धातुवृत्ति पृष्ठ २६३। २-उदात्त चान्त धातयों के प्रकरण में अनुदात्त इकारान्त क्षि २० धातु के पाठ के कारण का निर्देश करते हुए क्षीरस्वामी ने लिखा है
१. उभयथा ह्याचार्येण शिष्याः सूत्रं प्रतिपादिताः । केचिदाकडारादेका संज्ञा, केचित् प्राक्कडारात् परं कार्यम् । महाभाष्य १।४।१॥ शुङ्गाशब्दं स्त्रीलिङ्गमन्ये पठन्ति, ततो ढकं प्रत्युदाहरन्ति शौङ्ग य इति। द्वयमपि चैतत् प्रमाणमुभयथा सूत्रप्रणयनात् । काशिका ४ । १ ।११८ ॥
२५ २. उभयथा ह्याचार्येण शिष्याः प्रतिपामिताः, केचिद् वाक्यस्य [संप्रसारसंज्ञा] केचिद् वर्गस्य । भर्तृहरिकृत महाभाष्य दोपिका, पृष्ठ ३७२, हमारा हस्तलेख; पूना संस्क० पृष्ठ २७० ॥ सूत्रार्थद्वयमपि चैतदाचार्येण शिष्याः प्रति. पादिताः, तदुभयमपि ग्राह्यम् । काशिका ५। ११५०॥