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धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्यात ( २ )
साधु प्राश्रम, होशियारपुर में सुरक्षित हैं ) । इसकी एक प्रतिलिपि हमारे संग्रह में भी है ।
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भीमसेन का काल - इस वैयाकरण भीमसेन ने अपने जन्म से किस देश और काल को अलंकृत किया, यह अज्ञात है । भीमसेनसंबन्धी जितने निर्देश विविध ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं, उनमें सिद्धसेन गणी ५ का निर्देश सबसे प्राचीन है । सिद्धसेन गणी का काल विक्रम की ७वीं शती है, ऐसा ऐतिहासिकों का मत है । भीमसेन इससे भी बहुत प्राचीन है, यह उसकी प्रवरसीमा है । कई लोग इसको पाण्डुत्र धर्मराज का अनुज मानते हैं, यह नामसादृश्यमूलक भ्रान्ति है, यह हम पूर्व (पृष्ठ ६४ ) लिख चुके हैं।
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धातुपाठ के साथ भीमसेन का सम्बन्ध - भीमसेनसम्बन्धी जो निर्देश प्राचीन ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं, उनसे इतना स्पष्ट है कि भीमसेन का पाणिनीय धातुपाठ के साथ कोई विशिष्ट सम्बन्ध है । 'भोमसेनीय घातुपाठ' नाम से अनेक हस्तलिखित पुस्तक संग्रहालयों में विद्यमान धातुपाठ के कोश भी इस विशिष्ट सम्बन्ध के प्रज्ञापक १५ हैं | परन्तु यह विशिष्ट सम्बन्ध किस प्रकार का है, इस विषय में बैया - करणों में मतभेद है | कई ग्रन्थकार कहते हैं कि भीमसेन ने पाणिनीय धातुओं का प्रथमतः अर्थनिर्देश किया, अन्य लेखकों का मत है कि भीमसेन ने पाणिनीय धातुपाठ पर कोई व्याख्या लिखी थीं । इन में से
प्रथम मत प्रमाणशून्य है, यह हम पूर्व ( पृष्ठ ५२ - ६० ) प्रतिपादन २० कर चुके हैं । द्वितीय मल के सम्बन्ध में विचार करते हैं
धातुवृत्तिकार - हमारा अपना मत है कि भीमसेन ने पाणिनीय धातुपाठ पर कोई वृत्तिग्रन्थ लिखा था । इसके उपोद्वलक निम्न प्रमाण हैं
१ - प्राचार्य हेमचन्द्र हैमशब्दानुशासन २१८८ को बृहद् वृत्ति २५ में लिखता है - श्रन्ये त्वट्टि पठन्ति ।
इसकी स्वोपज्ञ बृहन्न्यास नाम्नी व्याख्या में हेमचन्द्राचार्य ने लिखा है
श्रन्ये त्विति - भीमसेनादयः ।