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धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (२)
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वेङ्कट रङ्गनाथ स्वामी ने प्राख्यातचन्द्रिका की भूमिका में आख्यातों के अर्थबोधक निम्न (३-६) ग्रन्थों का निर्देश किया है
३-कविरहस्य-यह हलायुध की कृति है। हलायुध का काल वि० सं० १२३०-१२६० तक माना जाता हैं।
४-क्रियाकलाप-इसका रचयिता विजयानन्द है । कहीं कहीं ५ विद्यानन्द नाम भी मिलता है। इसका काल आदि अज्ञात है।
५-क्रियापर्यायदोपिका-इसका रचयिता वीर पाण्ड्य है । इसका काल आदि भी अज्ञात है।
६-क्रियाकोश-इसका रचयिता विश्वनाथ-सूनु रामचन्द्र है।' विशिष्ट प्रमाण के अभाव में इसका कालनिर्णय भी अभी नहीं हो १० सकता। यह ग्रन्थ जैन प्रभाकर यन्त्रालय (काशी) में छपा था। यह भट्टमल्लकृत प्राख्यातचन्द्रिका का संक्षेप है ।
७-प्रयुक्ताख्यातमञ्जरी-इसका रचयिता कवि सारङ्ग है।
८-क्रियारत्नसमुच्चय-इस ग्रन्थ का रचयिता गुणरत्न सूरि है। यह ग्रन्थ हैम धातुपाठ का व्याख्यारूप है । अतः इसका वर्णन हम हैम १५ धातुपाठ के प्रकरण में करेंगे।
६-धातुरूपभेद-यह कृति दशवल अथवा वरदराज की है। १०-धातुसंग्रह-इस ग्रन्थ का निर्देश जगद्धर ने मालवीमाधव १।१७ की टीका में किया हैअभिसन्धिर्वञ्चनार्थ इति धातुसंग्रहः ।
जगद्धर का काल वि० सं० १३५० है । अतः धातुसंग्रह उससे पूर्ववर्ती है, इतना ही निश्चित रूप से कहा जा सकता है।
११-धातुकोश -घनश्यामकृत । इसका एक हस्तलेख सरस्वती महल तजौर के पुस्तकालय में है। द्र० जनरल आफ दी तजौर VOL. XXVI. No. 1, सन् १९७३।
२५ १. इति विश्वनाथसूनुरामचन्द्रविरचिते क्रियाकोशे द्वितीयं काण्डं समाप्तम्। २. क्रियाकोशं भट्टमल्लो थद्यपीमं व्यदधात् पुरा। तथापि तेषु संचित्य क्रिया भूरिप्रयोगिणीः । कोशोऽयमतिसंक्षिप्तो व्यदधाद् बालबुद्धये ।
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