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संस्कृत व्याकरण - शास्त्र का इतिहास
प्रोङ्कारं पृच्छामः, को धातुः, किं प्रातिपदिकं, कि नामाख्यातम्, कि लिङ्ग, कि वचनं, का विभक्तिः कः प्रत्ययः, क: स्वर उपसर्गो निपातः, किं वै व्याकरणं, को विकारः, को विकारी, कतिमात्रः, कतिवर्णः, कत्यक्षरः, कतिपदः, कः संयोगः, कि स्थाननादानुप्रदानानुकरणम् .....।'
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मंत्रायणी संहिता १1७13 में वैयाकरण - प्रसिद्ध विभक्ति-संज्ञा का उल्लेख मिलता है ।
ऐतरेय ब्राह्मण ७१।७ में विभक्ति रूप से सप्तधा विभक्त वाणी का उल्लेख है ।"
व्याकरणशास्त्र की प्राचीनता के विषय में इतना ही कहा जा सकता है कि मूल वेदातिरिक्त जितना भारतीय वैदिक वाङमय सम्प्रति उपलब्ध है । उस में व्याकरणशास्त्र का उल्लेख मिलता है । अत: यह सुव्यक्त है कि वर्तमान में उपलब्ध कृष्ण द्वैपायन के शिष्य - प्रशिष्यों द्वारा प्रोक्त समस्त प्रार्ष वैदिक वाङ् मय की रचना से पूर्व १५ व्याकरणशास्त्र पूर्णतया सुव्यवस्थित बन चुका था, और वह पठनपाठन में व्यवहृत होने लग गया था ।
व्याकरण का प्रथम प्रवक्ता - ब्रह्मा
भारतीय ऐतिह्य में सब विद्याओं का आदि प्रवक्ता ब्रह्मा कहा गया है । यह एक निश्चित सत्य तथ्य है । तदनुसार व्याकरणशास्त्र २० का आदि प्रवक्ता भी ब्रह्मा है । ऋक्तन्त्रकार ने लिखा है
ब्रह्मा बृहस्पतये प्रोवाच बृहस्पतिरिन्द्राय इन्द्रो भरद्वाजाय, भरद्वाज ऋषिभ्यः, ऋषयो ब्राह्मणेभ्यः || १ | ४ ||
इस वचनानुसार व्याकरण के एकदेश अक्षरसमाम्नाय का सर्वप्रथम प्रवक्ता ब्रह्मा है । युवानचांग (ह्य नसांग) ने भी अपने भारत
१. गो० ब्रा० पू० १।२४ ॥ २. तस्मात् षड् विभक्तय: । यह षड्-विध विभक्तियों का उल्लेख पुनराधेय प्रकरणगत प्रयाजों के सविभक्तिकरण - संबन्धी है । प्रयाजा : सविभक्तिकाः कार्याः । महाभाष्य १ । १ । १ में उद्धृत वचन ।
३. सप्तधा वै वागवदत् । रुप्त विभक्तय इति भट्टभास्करः । तुलना करो 'स्य ते सप्त सिन्धवः । ऋ० ८ । ६६ । १२ सप्त सिन्धवः सप्त विभक्तयः । ३० महाभाष्य ।
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