________________
व्याकरणशास्त्र की उत्पत्ति और प्राचीनता
भ्रमण के विवरण में ब्रह्मदेव कृत व्याकरण का निर्देश किया है ।'
भारतीय ऐतिह्यानुसार ब्रह्मा इस कल्प के विगत जल-प्लावन के पश्चात् हुआ था। यद्यपि उत्तरकाल में यह नाम उपाधिरूप में अनेक व्यक्तियों के लिये प्रयुक्त हा, तथापि सर्वविद्याओं का आदि प्रवक्ता प्रथम ब्रह्मा ही है, और वह निश्चित ऐतिहासिक व्यक्ति है। ५ इस का काल न्यूनातिन्यून १६ सहस्र वर्ष पूर्व है ।
ब्रह्मा का शास्त्र-प्रवचन समस्त भारतीय प्राचीन ऐतिहासिकों का सुनिश्चित मत है कि लोक में जितनी भी विद्यानों का प्रकाश हुआ, उन विद्याओं का प्रवचन ब्रह्मा ने ही किया था। यह प्रवचन अति विस्तृत था । यह १० आदि प्रवचन ही शास्त्र अथवा शासन नाम से प्रसिद्ध हुआ । उत्तरवर्ती समस्त प्रवचन ब्रह्मा के आदि प्रवचन के अनुसार हुअा, और वह भी उत्तरोत्तर संक्षिप्त । अतः उत्तरवर्ती प्रवचन मुख्यतया अनुशास्त्र अनुतन्त्र अथवा अनुशासन' कहाते हैं । इन के लिए शास्त्र अथवा तन्त्र शब्द का प्रयोग गौणीवृत्ति से किया जाता है ।
पं. भगवद्दत्तजी ने 'भारतवर्ष का बृहद इतिहास' ग्रन्थ के द्वितीय भाग (अ० ४) में ब्रह्मा द्वारा प्रोक्त जिन २२ शास्त्रों का सप्रमाण उल्लेख किया है, उन के नाम इस प्रकार हैं - १. वेदज्ञान ७. धनुर्वेद १३. लिपि-ज्ञान १६. नाट्यवेद २. ब्रह्मज्ञान ८. पदार्थविज्ञान १४. ज्योतिषशास्त्र २०. इतिहास २० ३. योगविद्या ६. धर्मशास्त्र १५. गणितशास्त्र पुराण । ४. आयुर्वेद १०. अर्थशास्त्र १६. वास्तुशास्त्र २१, मीमांसाशास्त्र ५. हस्त्यायुर्वेद ११. कामशास्त्र १७. शिल्पशास्त्र २२. शिवस्तव वा ६. रसतन्त्र १२. व्याकरण १८ अश्वशास्त्र स्तव-शास्त्र
१. हुएनचांग का भारतभ्रमण-वृत्तान्त, पृष्ठ १०६;पं० १४-१५ । २५ इण्डियनप्रेस, प्रयाग, सन् १९२६ ।
२. अनुशासन आदि में प्रयुक्त 'अनु'निपात अनुक्रम और हीन दोनों अर्थों का द्योतक है। उत्तरवर्ती तन्त्र संक्षिप्त होने से पूर्व तन्त्रों की अपेक्षा हीन हुए। 'अनुशाकटायनं वैयाकरणाः' में 'अनु' शब्द हीन अर्थ का द्योतक है । द्रष्टव्य'हीने' (११४१८६) सूत्र की काशिका। ३. तन्त्रमिव तन्त्रम् । ३०