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________________ ५४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास (छ) वच को लुङ में उम् प्रागम होकर निष्पन्न वोच के वोचति अादि रूप वेद में बहुधा मिलते हैं। इसीलिये निरुक्तकार यास्क 'यज' 'वप' आदि धातुओं को अंकृतसम्प्रसारण' 'यज' 'वप' तथा कृत-सम्प्रसारण 'इज' 'उप' का प्रति५ निधि मानता है।' १०. विक्रम की १३ वीं शताब्दी से पूर्वभावी वैयाकरण 'कृष' धातु को भ्वादि में पढ़ते हैं, किन्तु इसके भौवादिक प्रयोग लौकिक संस्कृत-ग्रन्थों में प्रायः उपलब्ध नहीं होते। फिर भी क्वचित् भूला भटका भौवादिक रूप लौकिक भाषा में भी मिल जाता है। प्राकृत१० भाषा और उडिया में प्रायः प्रयुक्त होते हैं। हिन्दी में भी उसके अपभ्रंश ‘करता' शब्द का प्रयोग होता है । ११. धातुपाठ में 'हन' धातु का अर्थ गति और हिंसा लिखा है । १. तद्यत्र स्वरादनन्तरान्तस्थान्तर्घातुर्भवति तद् द्विप्रकृतीनां स्थानमिति प्रदिशन्ति । तत्र सिद्धायामनुपपद्यमानायामितरयोपपिपादयिषेत् । निरुक्त २।२॥ १५ २. क्षीरतरङ्गिणी ११६३९। पृष्ठ १३०, हैमधातुपारायण, शाकटायन घातुपाठ संख्या ५७७, देवपुरुषकार पृष्ठ ३८, दशपादी-उणादिवृत्ति पृष्ठ १७, ५२ इत्यादि । भ्वादिगण से कृत्र धातु का पाठ सायण ने हटाया है। वह लिखता है-'अनेन प्रकारेगास्माभिर्धातुवृत्तावयं धातुनिराकृतः। ऋग्वेदभाष्य ११८२॥१॥ तथा धातुवृत्ति पृष्ठ १६३ । भट्टोजि दीक्षित ने सायण का ही २० अनुसरण किया है। सायण ऋग्वेदभाष्य में अन्यत्र कृञ् को भ्वादि में मानता है-'कृन करणे भौवादिकः । १।२३॥६॥ पाणिाने ने कृञ् धातु भ्वादिगण में पढ़ा था। तनादिगण में कृञ् का पाठ अपाणिनीय है । 'उ'-प्रत्यय अष्टाध्यायी ३।११७६ के विशेष विधान से होता है । इसीलिये स्वामी दयानन्द सरस्वती ने यजुर्भाष्य ३।५८ में लिखा है—'डुकृञ् करण इत्यस्य भ्वादिगणान्तर्गतपाठात् २५ शन्विकरणोऽत्र गाते, तनादिभिः सह पाठाद् उविकरणोऽपि । विशेष द्रष्टव्य अस्मत् सम्पादित क्षीरतरङ्गिणी पृष्ठ १३०, २६३ । ३. देवी पुराण (देवी भागवत से भिन्न) में एक श्लोक है-- ___ 'शून्यध्वजं सदाभूता नागगन्धर्वराक्षसा।। विद्रवन्ति महात्मानो नाना बाधं करन्ति च ॥३५॥२७॥ ३० ४. अणकरेदी (अनुकरति), भासनाटकचक्र पृष्ठ २१८ । करअन्तो (करन्तः कुर्वन्तः) भासनाटकचक्र पृष्ठ ३३६ ॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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