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________________ संस्कृत भाषा की प्रवृत्ति, विकास और हास मूर्धन्यभिजिघ्राणम् । गोभिल गृह्य २८|२४ ॥ वर्चसे हुम् इति श्रभिजिय । हिरण्य० गृह्य २ |४| १७ | (ख) घ्रा का सार्वधातुक प्रत्ययों में प्रयोग न पश्यति न चाघ्राति । महा० शान्ति० १८७।१८ | एवं बहुत्र । (ग) मा स्थानीय धम के प्रार्धधातुक में प्रयोगविधमिष्यामि जीमूतान् । रामा० सुन्दर० ६७।१२ ॥ धान्तो धातुः पावकस्यैव राशिः । (घ) ब्रूञ् धातु के प्रार्धधातुक प्रत्ययों में प्रयोग - ब्राह्मणो ब्रवणात् । निरुक्त | ६ | ५३ (ङ) यज के कित् ङित् प्रत्ययों में सम्प्रसारण द्वारा विहित इज् १० रूप का इज्यन्ति प्रयोग महा० शान्ति ० २६३।२६ में मिलता है । इसी प्रकार वस के उष रूप का उष्य प्रयोग महा० वन० में बहुत्र मिलता है । (च) ग्रह का सम्प्रसारण और भकारादेश होकर निष्पन्न गुभ का गर्भो गृभे: निरुक्त १० । १३ में प्रयोग है । गृभ धातु से ही फारसी का गिरिफ्त शब्द बना है । १५ १. 'प्रभिजिघ्राणम्' पाठान्तर में निर्दिष्ट पाठ युक्त है ।' अभिजिघ्रणम्' मुद्रित पाठ अशुद्ध है । द्र०— - गृह्यकारेण 'मूर्धन्यभिघ्राणम्' इति वक्तव्ये " मूर्धन्यभिजघ्राणम्' इत्यविषयेऽपि जिघ्रादेशः प्रयुक्तः । तन्त्रवार्तिक १३, अघि ० ८, पृष्ठ २५६, पूना संस्करण । २० श्रभिप्रायेति वाच्ये अभिजित्र्येति वचनं - हिरण्यकेशीय-‍ -गृह्य टीकाकार मातृदत्त । ३. क्षीरतरङ्गिणी १६५६, दशपादी वृत्ति ३।५, हैमोणादिवृत्ति ३३ में उद्घृत ( कुछ पाठान्तर हैं ) । धमिः प्रकृत्यन्तरमित्येके । क्षीरतरङ्गिणी १।६५६ ॥ ... प्रमादपाठो वा । २० २५ ४. निरुक्त का वर्तमान पाठ 'ब्राह्मणा ब्रुवाणा ' है । यह निश्चय ही पपाठ है । उपर्युक्त पाठ कुमारिल द्वारा उद्धृत है । यघा – कार्त्स्न्येऽपि व्याकरणस्य निरुक्ते हीनलक्षणा बहवो यद् ब्राह्मणो ब्रवणादिति । ...... ब्रुवी वचिरिति वच्या देशम कृत्वैव ब्रवणादित्युक्तम् । तन्त्रवा० ११३, अधि८, पृष्ठ २५६, पूना । ३०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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