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________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास मीमांसा के इस अधिकरण के आधार पर पाश्चात्त्य तथा तदनुयायी कतिपय भारतीय विद्वान् लिखते हैं, कि वेद में विदेशी-भाषाओं के अनेक शब्द सम्मिलित हैं।' उन का यह कथन सर्वथा कल्पना-प्रसूत है । यह हमारे अगले विवेचन से भले प्रकार स्पष्ट हो जायेगा। लौकिक-संस्कृत ग्रन्थों में अप्रयुक्त संस्कृत शब्दों का वर्तमान-भाषाओं में प्रयोग आज कल लोक में अनेक शब्द ऐसे व्यवहृत होते हैं, जो शब्द और अर्थ की दृष्टि से विशुद्ध संस्कृत-भाषा के हैं, परन्तु उन का संस्कृत-भाषा में प्रयोग उपलब्ध न होने से ये अपभ्रंश-भाषाओं के १० समझे जाते हैं। यथा १. फारसी-भाषा में पवित्र अर्थ में 'पाक' शब्द का व्यवहार होता है। परन्तु उस का पवित्र अर्थ में प्रयोग वेद के 'यो मा पाकेन मनसा चरन्तमभिचष्टे अन्तेभिर्वचोभिः' तथा 'योऽस्मत्पाकतरः" आदि अनेक मन्त्रों में मिलता है । २. हिन्दी में प्रयुक्त 'घर' शब्द संस्कृत गृहशब्द का अपभ्रंश माना जाता है, परन्तु है यह विशुद्ध संस्कृत शब्द । दशापादी-उणादि में इस के लिये विशेष सूत्र है। जैन संस्कृत-ग्रन्थों में इस का प्रयोग उपलब्ध होता है। भास के नाटकों की प्राकृत में भी इस का प्रयोग मिलता है। २० संस्कृत के 'घर' शब्द का रूपान्तर प्राकृत में 'हर' होता है । यथा 'पईहर-पइहर (द्र०-हैम प्रा० व्या० १११।४ वृत्ति) । इसी प्रकार १. ऋग्वेद ७१०४१८; अथर्व ८।४।८।। २. द्र.-कात्या० श्रौत २।२।२१ ॥ ३. योऽस्मत्पाकतरः' इत्यत्राल्पत्वे पाक शब्दः । 'तं मा पाकेन मनसाऽप२५ श्यन' इति 'यो मा पाकेन मनसा' इति च प्रशंसायाम् । गार्यनारायण प्राश्व० गृह्य १।२।। वस्तुत: प्रशंसा अर्थ लाक्षणिक है, मूल अर्थ पवित्र ही है । ४. 'हन्ते रन् घ च' । दशपादी उणा० ८।१०४; क्षीरतरङ्गिणी २०६८ में दुर्ग के मत में 'घर' स्वतन्त्र धातु मानी है। ५, पुरातनप्रबन्धसंग्रह, पृष्ठ १३, ३२ ॥ २५ ६. यज्ञफलनाटक पृष्ठ १६३॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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