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आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण
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के अन्त में अपनी प्रशस्ति में पांच श्लोक लिखे हैं। उनसे ज्ञात होता है कि धनेश्वर ने महाभाष्य पर 'चिन्तामणि' नामक टीका, 'प्रक्रियामणि' नामक नया व्याकरण, और पद्मपुराण के एक स्तोत्र पर टीका लिखी थी । महाभाष्यटीका का वर्णन हम पूर्व कर चुके हैं ।'
३ - अनुभूतिस्वरूप (सं० १३०० वि० )
अनुभूतिस्वरूप आचार्य ने सारस्वत - प्रक्रिया लिखी है ।
४ - श्रमृतभारती (सं० १५५० वि० से पूर्व ) अमृतभारती ने सारस्वत पर 'सुबोधिनी' नाम्नी टीका लिखी . है । यह अमल सरस्वती का शिष्य था ।
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इसके हस्तलेखों में विविध पाठों के कारण लेखक और उसके गुरु के नामों में सन्देह उत्पन्न होता है। कुछ श्रद्वय सरस्वती के शिष्य विश्वेश्वराब्धि का उल्लेख करते हैं, कुछ ब्रह्मसागर मुनि के शिष्य सत्यप्रबोध भट्टारक का निर्देश करते हैं । इस टीका का सब से पुराना हस्तलेख सं० १५५४ का है । इस का निर्माण 'क्षेत्रे व्यधायि पुरुषोत्तमसंज्ञकेऽस्मिन् ' के अनुसार पुरुषोत्तम क्षेत्र में हुआ था ।
५ - पुञ्जराज (सं० १५५० वि० )
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पुञ्जराज ने सारस्वत पर 'प्रक्रिया' नाम्नी व्याख्या लिखी है । यह मालवा के श्रीमाल परिवार का था । इसने जिससे शिक्षा ग्रहण की, वह मालवा के बादशाह गयासुद्दीन खिलजी का अर्थ मन्त्री था । गयासुद्दीन का काल वि० सं० १५२६- १५५७ तक है।
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नासिरुद्दीन द्वारा पुञ्जराज की हत्या - गयासुद्दीन खिलजी का लड़का नासिरुद्दीन बड़ा कामी (ऐयाश) था । वह राज्य के धन का अपव्यय करता था। पुञ्जराज ने इस अपव्यय की सूचना गयासुद्दीन को दी । इस कारण नासिरुद्दीन पुञ्जराज का शत्रु बन गया । उसने एक दिन अवसर पाकर घर पर लौटते हुए पुञ्जराज को मरवा २५ दिया । गयासुद्दीन अपने लड़के के इस कुकृत्य पर अत्यन्त क्रुद्ध हुआ । इससे भयभीत होकर नासिरुद्दीन राज्य छोड़कर चला गया। दो तीन वर्ष पश्चात् सैन्य-संग्रह करके 'माण्डू' पर चढ़ाई कर अपने पिता को कैद करके माण्डू का अधिकारी बना ।
१. द्र० - पूर्व पृष्ठ ४३४ ॥
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