SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 745
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृत व्याकरण - शास्त्र का इतिहास अनेक ग्रन्थ ऐसे हैं, जिनके लेखक दो-दो व्यक्ति हैं । परन्तु पूरा ग्रन्थ उनमें से किसी एक के नाम पर ही प्रसिद्ध हो जाता है । यथा— स्कन्द और महेश्वरविरचित निरुक्त टीका स्कन्द के नाम से, बाण और उसके पुत्र द्वारा विरंचित कादम्बरी बाण के नाम से, शर्ववर्मा और वररुचि विरचित कातन्त्र शर्ववर्मा के नाम से ही प्रसिद्ध है । ७०८ सारस्वत के दो पाठ - जैसे जैनेन्द्र व्याकरण का मूल पाठ प्राचार्य देवनन्दी प्रोक्त है, और उसका दूसरा शब्दार्णव के नाम से प्रसिद्ध पाठ गुणनन्दी द्वारा परिबृंहित पाठ है, उसी प्रकार सारस्वत व्याकरण के भी दो पाठ हैं । इसका दूसरा परिबृंहित पाठ सिद्धान्तचन्द्रिका १० नाम से प्रसिद्ध है । इस का परिबृंहण रामाश्रम भट्ट ने किया है । दोनों पाठों में लगभग ८०० सूत्रों का न्यूनाधिक्य है । इसके साथ ही प्रक्रियांश में भी कहीं-कहीं भेद है । इन दोनों के उणादिपाठ में भी अन्तर हैं । सारस्वत में उणादिसूत्रों की संख्या केवल ३३ है, परन्तु सिद्धान्तचन्द्रिका में उणादिसूत्रों की संख्या ३७० हो गई हैं । कई १५ विद्वान् दोनों व्याकरणों के वैषम्य को देखकर 'सिद्धान्तचन्द्रिका' को . २५ स्वतन्त्र व्याकरण मानते हैं, परन्तु हमारे विचार में उसे सारस्वत का परिबृंहित रूप ही मानना अधिक युक्त है । सारस्वत के टीकाकार २० सारस्वत व्याकरण पर अनेक वैयाकरणों ने टीकाएं रचीं। उनमें से जिनकी टीकाएं प्राप्य वा ज्ञात है, उनके नाम इस प्रकार हैं १ - क्षेमेन्द्र (सं० १२६० वि० १.) मेन्द्र ने सारस्वत पर 'टिप्पण' नाम से एक लघु व्याख्यान लिखा है । यह हरिभट्ट वा हरिभद्र के पुत्र कृष्णशर्मा का शिष्य था । अतः यह स्पष्ट है कि यह कश्मीर देशज महाकवि क्षेमेन्द्र से भिन्न है । २ - धनेश्वर (सं० १२७५ वि० ) धनेश्वर ने सारस्वत पर 'क्षेमेन्द्र - टिप्पण-खण्डन' लिखा है । यह धनेश्वर प्रसिद्ध वैयाकरण वोपदेव का गुरु था । इसने तद्धित प्रकरण १. अगला टीकाकारों का संक्षिप्त वर्णन हमने प्रधानतया डा० वेल्वाल्कर के ‘सिस्टम्स् आफ संस्कृत ग्रामर के आधार पर किया है, परन्तु क्रम और ३० काल-निर्देश हमने अपने मतानुसार दिया है ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy