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७१० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास - अन्य ग्रन्थ-पुञ्जराज ने अलंकार पर शिशु-प्रबोध ओर ध्वनिप्रबोध दो ग्रन्थ लिखे हैं।
६-सत्यप्रबोध (सं० १५५६ वि० से पूर्व) सत्यप्रबोध ने सारस्वत पर एक दीपिका लिखी है। इसका सब से ५ पुराना हस्तलेख सं० १५५६ का है। डा० बेल्वाल्कर ने इसका निर्देश नहीं किया है।
७-माधव (सं० १५६१ वि० से पूर्व) ' माधव ने सिद्धान्तरत्नावली नामक टीका लिखी है। इसके पिता
का नाम काहनू और गुरु का नाम श्रीरङ्ग था । इस टीका का सब से १० पुराना हस्तलेख सं० १५६१ का है। ..
___-चन्द्रकोति सूरि (सं० १६०० वि० ?)
चन्द्रकीति सूरि ने सुबोधिका वा दीपिका नाम्नी व्याख्या लिखी है । इसे ग्रन्थकार के नाम पर चन्द्रकीर्ति टीका भी कहते हैं। ग्रन्थ
के अन्त में दी गई प्रशस्ति के अनुसार इसका लेखक जैन मतानुयायी १५ था, और नागपुर के बृहद् गच्छ (तपागच्छ)' से सम्बन्ध रखता था ।
प्रशस्ति में लिखा है- .... .. 'श्रीमत्साहिसलेमभूपतिना सम्मानितः सादरम्।
सूरिः सर्वकलिन्दि का कलितधीः श्रीचन्द्रकीतिः प्रभः ॥३॥
देहली के बादशाह शाही सलीम सूर का राज्यकाल सं० १६०२२० १६१० (सन् १५४५-१५५३) है । अतः चन्द्रकीतिसूरि ने इसी
समय में सुबोधिका व्याख्या लिखी । - चन्द्रकीति सूरि विरचित सारस्वत दीपिका का एक हस्तलेख 'कलकत्ता संस्कृत कालेज' के पुस्तकालय में है। उसके अन्त में निम्न पाठ है___ 'इति श्रीमन्नागपुरीयतपागच्छाधीशराजभट्टारक वन्द्रकोतिसूरिविरचितायां सारस्वतव्याकरणस्य दीपिकायां सम्पूर्णाः । श्रीरस्तु कल्याणमस्तु सं० १३६५ वर्षे ।'
द्र०-सूचीपत्र भाग ८, व्याकरण हस्तलेख संख्या १११ । सं० १३६५ को शक संवत् मानने पर भी वि० सं० १५३० होता है, वह ३० १. 'श्रमग' पत्रिका, वर्ष ३०; अंक १२ (अक्टूबर १९७०) पृष्ठ ३७ ।
२. वही, पृष्ठ २७ ।