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________________ प्राचाय पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ७०३ सख्या क्रमशः ५+8+१०+६+११ है, अर्थात् ४१ पाद हैं । उपलब्ध ग्रन्थ खण्डित है, अतः सूत्र संख्या कितनी है, यह नहीं कहा जा सकता। नामान्तर-मलयगिरि-विरचित बृहत् कल्पवृत्ति की पूर्ति क्षेमकीर्ति ने की थी। उसमें इस शब्दानुशासन का उल्लेख मुष्टिव्याकरण ५ के नाम से किया है। स्वोपज्ञवृत्ति-वैयाकरण-सम्प्रदाय के अनुसार मलयगिरि ने भी अपने शब्दानुशासन पर वृत्ति लिखी है । यह शब्दानुशासन के साथ । मुद्रित हो चुकी है। परिमाण-मलयगिरि-रचित शब्दानुशासन एवं उसकी स्वोपज्ञ १० वृत्ति का परिमाण पांच सहस्र श्लोक है। - पं० विश्वनाथ मिश्र की भूल-पं० विश्वनाथ मिश्र ने जैसे अनेक वार मुद्रित चान्द्र व्याकरण की अनुपलब्धि (पूर्व पृष्ठ ६४६) लिखी है वैसे ही मलयगिरि शब्दानुशासन को भी अनुपलब्ध कहा है। यह है शोधकर्ता के परिज्ञान का एक नमूना । . अन्य ग्रन्थ ... व्याकरण-सम्बन्धी-मलयगिरि ने शब्दानुशासन से सम्बद्ध उणादि धातुपारायण गणपाठ और लिङ्गानुशासन की भी रचना की थी, परन्तु वे उपलब्ध नहीं है। इन्होंने 'प्राकृतव्याकरण' भी रचा था। सम्भव है कि आचार्य हेमचन्द्र के अनकरण पर उन्होंने संस्कृत- २० व्याकरण के अन्त में ही उसे निबद्ध किया हो । यह प्राकृत-व्याकरण भो सम्प्रति उपलब्ध नहीं है। __ जैनमत-सम्बन्धी-मलयगिरि ने जैनमत के ६ आगमों, तथा हरिभद्रसदृश आचार्यों के ग्रन्थों पर भी वृत्तियां लिखी हैं । ये वृत्तियां अति विस्तीर्ण और प्रौढ़ हैं । इन वृत्तियों का परिमाण लगभग दो .२५ लक्ष श्लोक है। . प्रागम लेखन से पूर्व शम्दानुशासन की रचना-मलयगिरि ने अपनी जैनागमों की वृत्तियों में स्वीय शब्दानुशासन के सूत्र ही उद्धृत किये हैं । इससे स्पष्ट है कि मलयगिरि ने इतने विशाल वृत्ति-वाङमय । की रचना से पूर्व ही शब्दानुशासन की रचना कर ली थी। ३०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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