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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ‘भद्रेश्वराचार्यस्तुकिञ्च स्वा दुर्भगा कान्ता रक्षान्ता निश्चिता समा। सचिवा चपला भक्तिर्बाल्येति स्वादयो दश ॥ इति स्वादौ वेत्यनेन विकल्पेन पुंवद्भावं मन्यते ।'
इन उद्धरणों से स्पष्ट है कि भद्रेश्वर सूरि ने कोई शब्दानुशासन रचा था, और उसका नाम 'दीपक' था। सायणविरचित माधवीया धातूवत्ति में श्रीभद्र के नाम से व्याकरणविषयक अनेक मत उधत हैं। सम्भव है कि वे मत भद्रेश्वर सूरि के दीपक व्याकरण के हों।
धातुवृत्ति पृष्ठ ३७८, ३७६ से व्यक्त होता है कि भद्रेश्वरसूरि ने अपने १० धातुपाठ पर भी कोई वृत्ति रची थी । इसका वर्णन धातुपाठ के
प्रवक्ता और व्याख्याता (३)' नामक बाईसवें अध्याय में किया है।
काल
वर्धमान ने गणरत्नमहोदधि की रचना वि० सं० ११९७ में की थी। उसमें भद्रेश्वर सूरि और उसके दीपक व्याकरण का उल्लेख १५ होने से इतना स्पष्ट है कि भद्रेश्वर सूरि सं० ११६७ से पूर्ववर्ती है,
परन्तु उससे कितना पूर्ववर्ती है, यह कहना कठिन है। ___पं० गुरुपद हालदार ने भद्रेश्वर सूरि और उपाङ्गी भद्रबाहु सूरि की एकता का अनुमान किया है। जैन विद्वान् भद्रवाह सूरि को
चन्द्रगुप्त मौर्य का समकालिक मानते हैं। अतः जब तक दोनों की २० एकता का बोधक सुदृढ़ प्रमाण न मिले, तब तक इनकी एकता का
अनुमान व्यर्थ है।
११. वर्धमान (सं० ११५०.१२२५ वि०) गणरत्नमहोदधि संज्ञक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के द्वारा वर्धमान २५ वैयाकरण-निकाय में सुप्रसिद्ध है। परन्तु वर्धमान ने किसी स्वीय
शब्दानुशासन का प्रवचन किया था, यह अज्ञात है।
१. सप्ननवत्यधिकेष्वेकादशसु शतेष्वतीतेषु । वर्षाणां विक्रमतो गणरत्नमहोदधिविहितः ॥ पृष्ठ २५१ । २. व्याकरण दर्शनेर इतिहास, पृष्ठ ४५२ ।
३. जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ ३४, ३५ ।