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प्राचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण
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तदनुसार बुद्धिसागर ने वि० सं० १०८० में उक्त व्याकरण की रचना की थी । श्रतः बुद्धिसागर का काल विक्रम की ११ वीं शताब्दी का उत्तरार्ध है, यह स्पष्ट है ।
व्याकरण का परिमाण
ऊपर जो श्लोक उद्धृत किया है, उसमें 'बुद्धिसागर व्याकरण' ५ का परिमाण सात सहस्र श्लोक लिखा है । प्रतीत होता है कि यह परिमाण उक्त व्याकरण के खिलपाठ और उसकी वृत्ति के सहित हैं । प्रभावकचरित में इस व्याकरण का परिमाण आठ सहस्र श्लोक लिखा है । मथा
श्रीबुद्धिसागरसूरिश्वत्रे व्याकरणं नवम् । सहस्राष्टकमानं तद् श्रीबुद्धिसागराभिधम् ' ॥
मद्रास विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित हर्षवर्धनकृत लिङ्गानुशासन की भूमिका पृष्ठ ३४ पर सम्पादक ने बुद्धिसागरकृतः लिङ्गानुशासन का निर्देश किया है । इसके उद्धरण हेमचन्द्र ने स्वीय लिङ्गानुशासन विवरण और अभिधान चिन्तामणि की व्याख्या में दिये हैं ।' व्याकरण पद्य - बद्ध है ।
यह
१०. भद्रेश्वर सूरि (सं० १२०० वि० से. पूर्व )
भद्रेश्वर सूरि ने 'दीपक' व्याकरण की रचना की थी । यह ग्रन्थ इस समय अनुपलब्ध है । गणरत्नमहोदधिकार वर्धमान ने लिखा है- २०
'मेधाविनः प्रवरवीपककत्तं युक्ताः' ।"
१५
इसकी व्याख्या में वह लिखता है - 'दीपककर्त्ता भद्रेश्वरसूरिः । प्रवरश्चासौ दीपककर्त्ता च प्रवरदीपककर्त्ता । प्राधान्यं चास्याधनिकवैयाकरणापेक्षा' |
आगे पृष्ठ ६८ पर 'दीपक' व्याकरण का निम्न अवरण दिया है- २५
१. द्र० - पूर्व पृष्ठ ६६२, टि० २, ३ ।
२. गणरत्नमहोदधि, पृष्ठे १ ।
३. गणरत्न महोदधि, पृष्ठ २ ।