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________________ ६६२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास प्रक्रियाग्रन्थकार (सं० १५०० वि० से पूर्ववर्ती) प्रक्रियाकौमुदी की प्रसादटीका में लिखा है'तथा च सरस्वतीकण्ठाभरणप्रक्रियायां पदसिन्धुसेतावित्युक्तम् ।" इससे प्रतीत होता है कि सरस्वतीकण्ठाभरण पर 'पदसिन्धुसेतु' नामक कोई प्रक्रियाग्रन्थ रचा गया था। ग्रन्थकार का नाम तथा देशकाल अज्ञात है। विट्ठल द्वारा उद्धृत होने में यह ग्रन्थकार सं० १५०० से पूर्ववर्ती है, यह स्पष्ट है। ९. बुद्धिसागर सूरि (सं० १०८० वि०) आचार्य बुद्धिसागर सूरि ने 'बुद्धिसागर' अपर नाम 'पञ्चग्रन्थी' व्याकरण रचा था। प्राचार्य हेमचन्द्र ने स्वीय लिङ्गानुशासन विवरण और हैम अभिधानचिन्तामणि' की व्याख्या में इसका निर्देश किया परिचय बुद्धिसागर श्वेताम्बर सम्प्रदाय का आचार्य था । यह चन्द्र कुल के वर्धमान सूरि का शिष्य और जिनेश्वर सूरि का गुरुभाई था । कुछ विद्वान् जिनेश्वर सूरि का सहोदर भाई मानते हैं। काल बुद्धिसागर व्याकरण के अन्त में एक श्लोक है'श्रीविक्रमादित्यनरेन्द्रकालात् साशीतिके याति समासहस्र। सश्रीकजाबालिपुरे तदाद्यं दृब्धं मया सप्तसहस्रकल्पम् ॥' १. द्र०-भाग २, पृष्ठ ३१२ । २. उदरम् जाठरव्याधियुद्धानि । जठरे त्रिलिङ्गमितिः बुद्धिसागरः । पृष्ठ २० १०० । इसी प्रकार पृष्ठ ४, १०३, १३३ पर भी निर्देश मिलता है । ३. [उदरम्] त्रिलिङ्गोऽयमिति बुद्धिसागरः । पृष्ठ २४५ । ४. बुद्धिसागर सूरि का उल्लेख पुरातनप्रबन्धसंग्रह पृष्ठ ६५ के अभयदेव सूरि के प्रबन्ध में मिलता है। ५. पं० चन्द्रसागर सूरि सम्पादित सिद्धहैमशब्दानुशासन बृहद्वृत्ति प्रस्तावना, पृष्ठ 'खे'।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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