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________________ प्राचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ६६१ कई विद्वान् कृष्ण लीलाशुक को बंगदेशीय मानते हैं, परन्तु यह चिन्त्य है । 'पुरुषकार' के अन्त में विद्यमान श्लोक से विदित होता है कि वह दाक्षिणात्य है, काञ्चीपुर का निवासी है । इसका निश्चित काल अज्ञात है । कृष्ण लीलाशुक-विरचित 'पुरुषकार' व्याख्या की कई पंक्तियां देवराज-विरचित निघण्टुटीका में उद्धृत है।' देवराज का ५ समय सं० १३५०-१४०० के मध्य माना जाता है । अतः कृष्ण लीलाशुक सं० १३५० से पूर्ववर्ती है। यह उसकी उत्तर सीमा है। पुरुषकार में आचार्य हेमचन्द्र का मत तीन बार उद्धत हैं। हेमचन्द्र का ग्रन्थलेखन काल सं० ११६६-१२२० के लगभग है । यह कृष्ण लीलाशुक्र की पूर्व सीमा है। पं० सीताराम जयराम जोशी ने 'संस्कृतसाहित्य का संक्षिप्त इतिहास' में कृष्ण लीलाशुक का काले सन् ११००। ई० (वि० सं० ११५७) के लगभग माना है, वह चिन्त्य है। पुरुषकार में 'कविकामधेनु' नामक ग्रन्थ कई बार उद्धृत है। यह अमरकोष की टीका है। इस ग्रन्थ में पाणिनीय सूत्र उद्धृत हैं। ___ कृष्ण लीलाशुक के देश काल आदि के विषय में हमने स्वसम्पा- १५ दित दैवपुरुषकारवार्तिक के उपोद्घात में विस्तार से लिखा है। अतः इस विषय में वहीं (पृष्ठ ५-८) देखें । कृष्ण लीलाशुक मुनि के अन्य ग्रन्थों का भी विवरण वहीं दिया है। पिष्टपेषणभय से यहां पुन नहीं लिखते। ४-रामसिंहदेव २० रामसिंहदेव ने सरस्वतीकण्ठाभरण पर 'रत्नदर्पण' नाम्नी व्याख्या । लिखी है । ग्रन्थकार का देशकाल अज्ञात है। १. क्षुप् प्रेरणे, क्षपि क्षान्त्यामिति स्थादिषु [अ] पठितेऽपि बहुलमेतन्निदर्शनमित्यस्योदाहरणत्वेन धातुवृत्तौ पठ्यते । क्षपेः क्षपयन्ति क्षान्त्यां प्रेरणे क्षपयेत् इति दैवम् । निघण्टुटीका पृष्ठ ४३ । देखो-दैवम् पुरुषकार, पृष्ठ २५ ५८, हमारा संस्करण। २. द्र० -पृष्ठ १६, २१, २३, हमारा संस्करण । . ३. द्र०—पृष्ठ २५६ ।। ४. यथा-प्रसूनं कुसुमं सुमम् (अमर २।४। १७) इत्यत्र कविकामधेनुः षूङ प्राणिप्रसवे ।....."पृष्ठ २६, हमारा संस्क० । ५. 'स्यादारितकं हासः....... इत्यमरसिंहश्च (१।६। ३५) तच्चतत् छुर छेदने क्तः । यावादिभ्यः कन् (अष्टा० ५। ४ । २६) इति । कामधेनौ व्याख्यातम् । पृष्ठ ६४ हमारा संस्करण। .
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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