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आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ६९५. संक्षिप्तसार की गोयीचन्द्र कृत टीका में एक पाठ है
चन्द्रोऽनित्यां वृद्धिमाह । भागवृत्तिकारस्तु नित्यं वृद्धयभावम् ।.. 'वौ श्रमेर्वा' इति वर्धमानः। ....
इस उद्धरण से स्पष्ट है कि वर्धमान ने कोई शब्दानुशासन रचा था। और उसी के अनुरूप उसके गणपाठ को श्लोकबद्ध करके उसको ५ ब्याख्या लिखी थी।
काल वर्धमान ने गणरत्नमहोदधि के अन्त में उसका रचनाकाल वि० सं० ११६६ लिखा है। वर्धमान ने स्वविरचित 'सिद्धराज' वर्णन काव्य का उद्धरण गणरत्नमहोदधि (पृष्ठ १७) में दिया है। प्रारम्भ १० में तृतीय श्लोक की व्याख्या के पाठान्तर स्वशिष्यैः कुमारपालहरिपालमुनिचन्द्रप्रभृतिभिः' में कुमारपाल का वि० सं० ११५०-१२२५ तक मानना युक्त है।
वर्धमान-विरचित गणरत्नमहोदधि का वर्णन दूसरे भाग में गण'पाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता के प्रकरण में किया हैं।
१२. हेमचन्द्र सूरि (सं० ११४५-१२२९ वि०) प्रसिद्ध जैन प्राचार्य हेमचन्द्र ने 'सिद्धहैमशब्दानुशासन' नामक एक सांगोपाङ्ग बृहद् व्याकरण लिखा है। परिचय
२० . वंश-हेमचन्द्र के पिता का नाम 'चाचिग' (अथवा 'चाच') और माता का नाम 'पाहिणी' (पाहिनी) था । पिता वैदिक मत का अनुयायी था, परन्तु माता का झुकाव जैन मत की ओर था। हेमचन्द्र का जन्म मोढवंशीय वैश्यकुल में हुआ था।
जन्म-काल-हेमचन्द्र का जन्म कार्तिक पूर्णिमा सं० ११४५ में २५ हुआ था।
। १. संधि प्रकरण सूत्र ६।।
२. पृष्ठ २ ।