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६८६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
'न तथा बाधते राजन् ! यथा बाघति बाधते ।' . अर्थात्-हे राजन् ! लकड़ियों का भार मुझे इतना कष्ट नहीं पहुंचा रहा है, जितना आपका 'बाधति' अपशब्द कष्ट दे रहा है। .
- वस्तुतः महाराज विक्रमादित्य के अनन्तर भोजराज ने ही ऐसा ५ प्रयत्न किया, जिस से संस्कृत भाषा पुनः उस समय की जनसाधारण
की भाषा बन गई । ऐसे स्तुत्य प्रयत्नों के कारण ही संस्कृत भाषा अभी तक जीवित है। जो संस्कृतभाषा मुसलमानों के सूदीर्घ राज्यकाल में नष्ट न हो सकी। वह ब्रिटिश राज्य के अल्प काल में मतप्रायः
हो गई। इसका मुख्य कारण यह है कि मुसलमानों के राज्यकाल में १० आर्य राजनैतिक रूप में पराधीन हुए थे, वे मानसिक दास नहीं बने
थे, उन्होंने अपनी संस्कृति को नहीं छोड़ा था । परन्तु ब्रिटिश शासन ने आर्यों में मानसिक दासता का एक ऐसा बीज वो दिया कि उन्हें योरोपियन विचार, योरोपियन भाषा तथा योरोपियन सभ्यता ही
सर्वोच्च प्रतीत होती है, तथा भारतीय भाषा और संस्कृति तुच्छ १५ प्रतीत होती है। भारत के स्वतन्त्र हो जाने पर भी वह मानसिक
दासता से मुक्त नहीं हुअा। नेता माने जाने वाले लोग अभी भी अंग्रेजी भाषा, अंग्रेजी सभ्यता से उसी प्रकार चिपटे हए हैं, जैसे पराधीनता के काल में थे । इसी कारण सब भाषानों की आदि जननी,
समस्त संसार को ज्ञान तथा सभ्यता का पाठ पढ़ानेहारी संस्कृतभाषा २० आज अन्तिम श्वास ले रही है।' वस्तुतः भारतीय संस्कृति की रक्षा
तभी हो सकेगी, जब हम अपनी प्राचीन संस्कृतभाषा का पुनरुद्धार करेंगे। क्योंकि भाषा और संस्कृति का परस्पर चोली-दामन का सम्बन्ध है । आर्यों की प्राचीन संस्कृति ज्ञान और इतिहास के समस्त ग्रन्य संस्कृत भाषा में ही हैं । अतः जब तक उन ग्रन्थों का अनुशीलन न होगा, भारतीय सभ्यता कभी जीवित नहीं रह सकती। इसलिये भारतीय सभ्यता की रक्षा का एकमात्र उपाय संस्कृत भाषा का पुनरुद्धार है।
.... १. स्वतन्त्रता प्राप्ति के अनन्त र संस्कृत भाषा के अध्ययन-अध्यापन और
प्रचार का जिस तेजी से ह्रास हुआ है, उसे देखते हुए सम्प्रति इस सर्वभाषा ३० जननी की रक्षा का प्रश्न अत्यन्त गम्भीर हो गया है।