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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
शिष्य ने अपनी ऋक्सर्वानुक्रमणी की वृत्ति सं० १२३४ में लिखी थी। शिवस्वामी बौद्धमतावलम्बी था. और शिवयोगी वैदिक धर्मावलम्बी था। अतः शिवयोगी और शिवस्वामी को एक समझना महती भूल है। प्रतीत होता है कि पं० गुरुपद हालदार को षड्गुरुशिष्य के काल का ध्यान न रहा होगा, और नामसादृश्य से उन्हें भ्रान्ति हुई होगी।
शिवस्वामी का व्याकरण शिवस्वामी प्रोक्त व्याकरण ग्रन्थ इस समय उपलब्ध नहीं है। इसके जो उद्धरण पूर्व उदधत किये हैं उन से विदित होता है कि १० शिवस्वामी ने अपने व्याकरण पर कोई वृत्ति भी लिखी थी और
स्व-तन्त्र सम्बन्धी धातुपाठ का भी प्रवचन किया था।
८. महाराज भोजदेव (सं० १०७५-१११०) ____ महाराज भोजदेव ने 'सरस्वतीकण्ठाभरण' नाम का एक बृहत् १५ शब्दानुशासन रचा है । उन्होंने योगसूत्रवृत्ति के प्रारम्भ में स्वयं लिखा है
'शब्दानामनुशासनं विदधता पातञ्जले कुर्वता, वृत्ति, राजमृगाङ्कसंज्ञकमपि व्यातन्वता वैद्यके ।
वाक्चेतोवपुषां मलः फणिभृतां भत्रैव येनोद्धृत२० स्तस्य श्रीरणरङ्गमल्लनृपतेर्वाचो जयन्त्युज्ज्वलाः ॥
इस श्लोक के अनुसार सरस्वतीकण्ठाभरण, योगसूत्रवृत्ति और राजमृगाङ्क ग्रन्थों का रचयिता एक ही व्यक्ति है, यह स्पष्ट है ।
परिचय और काल भोजदेव नाम के अनेक राजा हुए हैं, किन्तु सरस्वतीकण्ठाभरण २५ आदि ग्रन्थों का रचयिता, विद्वानों का आश्रयदाता, परमारवंशीय * धाराधीश्वर ही प्रसिद्ध है । यह महाराज सिन्धुल का पुत्र और महाराज जयसिंह का पिता था।
१. खगोत्यान्मेषुमायेति कल्यहर्गणने सति । सर्वानुक्रमणीवृत्तिर्जाता वेदार्थदीपिका । वेदार्थदीपिका के अन्त में । कलि के १५,३५, १३२ दिन =कलि सं० ३० ४२८८, वि० सं० १२३४ । २. द्र०-पूर्व पृष्ठ ६८३, टि०१; ६८४,टि०१-३ ।