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६८२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास . .
२-मंगारस-मंगारस ने चिन्तामणि वृत्ति पर चिन्तामणि प्रतिपद' नाम्नी व्याख्या लिखी थी।' इस का देश काल अज्ञात है। - ३-समन्तभद्र-किसी समन्तभद्र नामक व्याख्याकार ने चिन्ता
मणि वृत्ति पर 'चिन्तामणिविषमपद' टीका लिखी थी। इस का भी ५ देश काल अज्ञात है।
प्रक्रिया-ग्रन्थकार १-अभयचन्द्राचार्य (१३ वीं शती वि० उत्तरार्ध) अभयचन्द्राचार्य ने शाकटायन सूत्रों के आधार पर 'प्रक्रियासंग्रह ग्रन्थ रचा है। यह ग्रन्थ शाकटायन व्याकरण में प्रवेशार्थियों के लिये लिखा गया है। अतः इसमें सम्पूर्ण सूत्र व्याख्यात नहीं हैं। बिरवे के अनुसार इसका काल ई० को १४ वीं शती का पूर्वार्द्ध है ।
२-भावसेन त्रैविट देव इन्होंने भी प्रक्रियानुसारी 'शाकटायनटीका' ग्रन्थ लिखा है। . इन्हें वादिपर्वतवज्र भी कहते हैं।
. ३-दयालपाल मुनि (सं० १०८२ वि०) मुनि दयालपाल ने बालकों के लिये 'रूपसिद्धि' नामक लघु प्रक्रिया ग्रन्थ बनाया है। ये पार्श्वनाथचरित के कर्ता वादिराजसूरि के सधर्मा माने जाते हैं। अतः इनका काल सं० १०८२ के लगभग है। यह ग्रन्थ प्रकाशित हो चुका है।
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७. शिवस्वामी (सं० ९१४-९४०) शिवस्वामी महाकवि के रूप में संस्कृत साहित्य में प्रसिद्ध हैं। इन का रचा हा कफ्फणाभ्युदय महाकाव्य एक उच्च कोटि का ग्रन्थ है। वैयाकरण के रूप में शिवस्वामी का उल्लेख क्षीरतरङ्गिणी'
२५ १. सं० प्रा० जैन व्याकरण और कोश की परम्परा, पृष्ठ ६८ ।
२. वही, पृष्ठ ६८।
३. चान्तोऽयं (=सश्च) इति शिवः । १ । १२२, पृष्ठ ४१ । धून इति . इहामु शिवस्वामी दीर्घमाह । ५। १०, पृष्ठ २२६, २२७ ।