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आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण
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भास्करन्यास' की रचना की थी । ये दोनों ग्रन्थकार एक हैं वा पृथक्पृथक्, यह अज्ञात है ।
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१३ वीं शताब्दी के कृष्ण लीलाशुक मुनि ने 'दैवम्' को पुरुषकार टीका में शाकटायन न्यास को उद्धृत किया है । इससे स्पष्ट है कि शाकटायन न्यास की रचना १३ वीं शताब्दी से पूर्व की है ।
आचार्य प्रभाचन्द्रकृत न्यास ग्रन्थ के संप्रति केवल दो अध्याय उपलब्ध हैं ।"
२ - अमोघविस्तर (१४वीं शती वि० से पूर्व )
इस व्याख्या का उल्लेख माघवीय धातुवृत्ति' में उपलब्ध होता है इसके कर्त्ता का नाम अज्ञात है । माघवीय धातुवृत्ति में उपलब्ध होने से इतना निश्चित है कि इसकी रचना १४ वीं शती से पूर्व अथवा उसके पूर्वार्ध में हुई होगी ।
३ यक्षवर्मा
यक्षवर्मा ने अमोघा वृत्ति को ही संक्षिप्त कर शाकटायन की 'चिन्तामणि' नाम्नी लघ्वी वृत्ति रची है। यह वृत्ति काशी से प्रका- ४१५ शित हो चुकी है । इस वृत्ति का ग्रन्थ- परिमाण लगभग ६ सहस्र श्लोक है। यक्षवर्मा ने अपनी वृत्ति के विषय में लिखा है कि इस वृत्ति
अभ्यास से बालक और बालिकाएं भी निश्चय से एक वर्ष में समस्त वाङमय को जान लेती हैं।" राबर्ट बिरवे ने यक्षवर्मा का काल ईसा को १२ वीं शती से पूर्व माना है । चिन्तामणिवृत्ति के टीकाकार
१ - अजित सेनाचार्य - आचार्य अजितसेन ने यक्षवर्मविरचित चिन्तामणि वृत्ति पर चिन्तामणिप्रकाशिका नाम्नी टीका लिखी है । इस का देश काल अज्ञात है ।
१. शाकटायनन्यासे तु णोपदेशो वाऽयम् । पृष्ठ ६६ | हमारा संस्क० २५ पृष्ठ ६१ ।
२. जैन साहित्य और इतिहास, द्वि० [सं० पृष्ठ १६०
३. धातुवृत्ति पृष्ठ ४४ ॥
. ४. बालाबलाजनोऽप्यस्या वृत्त रभ्यासवृत्तितः । समस्तं वाङ्मयं वेत्ति वर्ष - . णैकेन निश्चयात् ॥ प्रारम्भिक श्लोक १२ ।
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